- महाभारत प्रन्धका काल
तक व्यापारके सम्बन्धसे उन लोगोंको पर रचा गया है। इतने बड़े परिवर्तनके जानकारी हमको अवश्य होगी। इसके लिये ग्रीक लोगोंका और हमारा एकत्र सिवा सिकन्दरके समय उसके साथ सहवास तथा दृढ़ परिचय अत्यन्त आच- रहनेवाले ग्रीक लोगोंको मालूम हुआ कि श्यक है। अब देखना चाहिये कि यह सह- अफगानिस्तानमें यूनानियोंकी एक प्राचीन वास और परिचय कब हुआ। बस्ती है। इसी यवन जातिके लोगोंका: जब सेल्यूकसकी अमलदारी हिन्दु. नाम कांबोज आदि म्लेच्छोंके साथ साथ स्थानसे उठ गई, तब ईसवी सन्के पहिले महाभारतमें बार बार पाया जाता है । इन २०० के लगभग, बैक्ट्रियन देशमें स्थित लोगोंके आचार-विचार बहुत कुछ बदल यूनानियोंने हिन्दुस्थान पर चढ़ाई करके गये थे। इन सब बातोसे जानाड़ता है। पंजाबमें फिर अपना राज्य स्थापित किया। कि ईसवी सन्के पहिले ८००-१०० वर्षसे उनका यह राज्य १०० वर्षतक हिन्दुस्थान- लेकर सिकन्दरके समयतक अर्थात् सन में रहा । ग्रीक लोगोंका और शक लोगों- ३०० ईसवीतक हम लोगोंको यूनानियों का साहचर्य प्रसिद्ध है । इसीसे 'शक- का परिचय था। ये लोग मुख्यतः अयोनि- यवनम' शब्द प्रचलित हुश्रा । उनका यन जातिके थे । इसीसे हमारे प्राचीन मशहर राजा मिनन्डर बौद्ध इतिहासमें ग्रन्थोंमें यूनानियोंके लिये यवन' शब्दका 'मिलिन्द' नामसे प्रसिद्ध है । उसीके प्रयोग किया गया है। इतनं विस्तारके प्रश्नों के सम्बन्धमें 'मिलिन्द-प्रश्न' नामक साथ विवेचन करनेका कारण यह है कि बौद्ध ग्रन्थ बना है। इन ग्रीक लोगोंके पाणिनिके सूत्रोंमें यवन-लिपिका उल्लेख अनन्तर अथवा लगभग उसी समय शक पाया जाता है। पाणिनिकासमय सिकन्दर-लोगोंने हिन्दुस्थान पर चढ़ाइयाँ की। के पहलेका होना चाहिये । तब प्रश्न है उनके दो भाग होते हैं। एक भाग वह है कि उसके सूत्रोंमें यवन शब्द कैसे पाया? जो पंजाबमेसे होता हुआ मथुरातक यदि सिकन्दरके पहले यवनोंका कुछ फैल गया था: और दुसरा वह है जो परिचय न हो, तो पाणिनिके सूत्रोंकोसिक- सिंध-काठियावाड़से होता हुश्रा उज्जैन- न्दरके बादका ही समय देना चाहिये। की ओर मालवतक चला गया था । परन्तु हम देख चुके हैं कि हमारा यह इन शकोंके साथ यूनानी भी थे, क्योंकि परिचय ईसवी सन्के पहले ८००-६०० वर्ष । उनके राज्य बैक्ट्रियामें ही थे। वे लोग तकका प्राचीन है। ऐसी अवस्थामें पाणिनि-यूनानियोंके सब शास्त्र और कला-कुश- का समय वहाँतक जा सकता है: परन्तु लता जानते थे। ऊपर लिखे हुए दूसरं इतने अल्प परिचयसे ही हिन्दुस्थानमें भागके शक लोगोंने उज्जैनको जीतकर वहाँ मेषादि राशियोंका प्रचलित हो जाना अपना गज्य स्थापित किया और विक्रमके सम्भव नहीं है। कारण यह है कि हमारे वंशजोंके बाद वहीं शक लोगोंकी गज- यहाँ मेषादि राशियोंके आ जानेसेज्योतिष धानी हो गई। उन्होंने यहाँ शककाल शासक गणितमें बडा भारी परिवर्तन हो प्रारम्भ किया इसी लिय उस कालको गया है। इसके पहलेका वंदांग-ज्योतिष 'शक' कहते हैं । शक लांगोंका राज्य उज्जैन, नक्षत्रादि सत्ताईस विभागों पर बना है. मालवा और काठियावाड़में लगभग ३०० और उसके इस पारका सब ज्योतिष- वर्षातक रहा । इन्हीको अमलदारीमें गणित राशियों तथा ३० अंशोंके आधार " यवन-ज्योतिष और भारतीय ज्योतिषके