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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/८१

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  • महाभारत ग्रन्थका काल है

अमलनेरकर कहते हैं कि गीतामें वेदान्त- कहीं नहीं कहा है। प्राचार्यने उसे घेदान्त- सूचोंका उल्लेख है। देखना चाहिये कि मीमांसा-शास्त्र कहा है । यदि प्रोफेसर इस श्लोकके सम्बन्धमें ये लोग क्या कहते मैक्समूलरका यह कथन हो कि बादरा- हैं। पूरा श्लोक इस प्रकार है: यप-सूत्रोंमें भगवद्गीताके जो वाक्य स्मृति ऋषिभिर्बहुधागीतं छंदोभिर्विविधैः पृथक्। कहकर लिये गये हैं उन्हें भगवनीताने ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितैः॥ किसी दूसरी जगहसे लिया है, तो हम प्रोफेसर साहब कहते हैं-"इस यह भी कह सकते हैं कि पहले "ब्रह्म- लोकमें 'ब्रह्मसूत्रपदैः शब्दका प्रयोग सूत्र” नामका भी कोई ग्रन्थ रहा होगा वेदान्त-सूत्रोंके लिये किया गया है। फिर और वह वेदान्तसूत्रोंमें शामिल कर दिया इसके विरुद्ध शङ्कराचार्यादि टीकाकार गया होगा। यह बात निर्विवाद सिद्ध है कुछ भी कहें। यदि वेदान्त-सूत्रोंमें भग- कि वेदान्तसूत्रके पहले अनेक सूत्र थे। वगीताके वचनोंका अाधार स्मृति कह पाणिनीने नूतन और प्राचीन सूत्रोका कर लिया गया है, तो उनके सम्बन्धमें उल्लेख किया है। अस्तु: यह बात भी नहीं सिर्फ यही कहा जा सकता है कि इन मानी जा सकती कि दोनोंके कर्ता एक वचनोंको भगवद्गीताने भी दूसरी जगहसे हैं । और यदि श्लोकका सरल अर्थ लिया है। बहुत हो तो यही माना जा किया जाय तो मालूम हो जायगा कि सकता है कि दोनों, अर्थात् भगवद्गीता प्रोफेसर मैक्समूलर और अंमलनेरकर- और वेदान्तसूत्र, एकही समयके अथवा का बतलाया हुआ अर्थ भी ठीक नहीं है। एकही कर्ताके हैं। इस श्लोकका इतना इस श्लोकमे वेद और स्मृति नामक म ही अर्थ है कि यह विषय वेद और स्मृतिमें तो किसी दो ग्रन्थोंका ही उल्लेख है और अषियों तथा प्राचार्यों द्वारा प्रति- न ऋषि तथा प्राचार्य नामक किसी पादित किया गया है।" उक्त कथनको दो कर्ताओंका ही उल्लेख है। 'ऋषिभिः ग़लत सिद्ध कर देनेसे हमारी सब शब्द करि तृतीया है और इसका कठिनाई दूर हो जायगी । पहले यह सम्बन्ध दोनों ओर किया जाना चाहिये: देखना चाहिये कि 'ब्रह्मसूत्रपदैः' का शङ्क- अर्थात 'ऋषिभिः छन्दोमिर्गीन और राचार्यने का अर्थ किया है। "ब्रह्मणः 'ऋषिभिः ब्रह्मसूत्रपदैः गीतं इस प्रकार सूचकानि वाक्यानि पद्यते गम्यते शायते अन्वय करना चाहिये । 'बलसूत्रपदैः। ब्रह्मति तानि ब्रह्मसूत्रपदेन सूच्यन्ते" करणे तृतीया है । इस वाक्यमें कर्ता नहीं अर्थात्, यहाँ प्राचार्य ने ऐसे उपनिषद्- बतलाया गया है, इसलिये प्रोफेसर वाक्योंका समावेश किया है कि जिनमें साहब 'आचार्यैः' शब्दको श्लोकके बाहर- ब्रह्मके विषयमें विचार किया गया हो। से कर्ताके स्थान पर प्रयुक्त करते हैं। प्राचार्य शङ्करका किया हुआ यही अर्थ परन्तु ऐसा करनेका उन्हें कोई अधिकार ठीक है । प्रोफेसर मैक्समूलरका कथन नहीं है। 'ऋषिभिः' को ही पिछले वाक्यमें उन्हीके विरुद्ध इस प्रश्नसे लगाया जा से कर्ताके स्थान पर लेना चाहिये । सकता है, कि भगवद्गीतामें ब्रह्मसूत्र शब्द- तात्पर्य यह है कि इस श्लोकमें ऋषि का जो प्रयोग किया गया है, वह बाद- और प्राचार्य नामक कोई दो कर्ता नहीं रायणके घेदान्तसूत्रको ही कैसे लगाया बतलाये गये हैं। अतएव यहाँ वेदान्त- जा सकता है ? इस सूत्रको तो "ब्रह्मसूत्र" | सूत्रोंका बोध नहीं हो सकता। वेदान्त-