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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१०३

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जापान की जीत का कारण / 99 जो बातें उसे औरों में अनुकरणीय जान पड़ी उनका अनुकरण उसने जापानी ढंग से किया। अपनी जातीयता-अपना स्वदेश-प्रेम-उसने नहीं जाने दिया। पश्चिमी सभ्यता को उसने जापानी साँचे में ढाला । जापान की अनुकरणशीलता में यही विशेषता है। इसी के कारण जापान फिर भी जापान बना हुआ है । पृथ्वी के प्रबलतम देश रूम पर जापान की जो यह जीत हुई है उसके ये सभी कारण हैं । पर ये कारण साधारण हैं । इस जीत का प्रधान कारण जापान की विज्ञान-वृद्धि है। यदि जापान में अनेक प्रकार की विज्ञान-शिक्षा की उन्नति न होती तो कदापि जापान आज रूस-विजयी न कहलाता । यह राय बड़े बड़े लब्धप्रतिष्ठ, नीति-निपुण और प्रसिद्ध मनुष्यों की है। चीन-जापान की लड़ाई हुए दस वर्ष हुए। उस समय यालू नदी के किनारे जापानियों की तोपों की दिल दहलानेवाली आवाज़ ने योरप, अमेरिका और एशिया की प्रबल शक्तियों को सोते से जगा सा दिया। उन्होंने समझा कि सुदूर पूर्व में भी एक प्रबल शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ और बड़ बड़े राजकीय मामलों में अब, आगे, उससे भी सलाह मशविरा करने की जरूरत पड़ा करेगी। जापान की इस अश्रुतपूर्व उन्नति का कारण क्या है ? कारण यह है कि जापान ने विज्ञान को अपने देश में सबसे अधिक प्रधानता दी है। शान्ति के समय में भी और अशान्ति के समय में भी उसने वैज्ञानिक शिक्षा को अपनी उन्नति का आधार माना है। जितने कलाकौशल हैं, जितने अध्यवसाय हैं, जितने कल कारखाने हैं, जापान में, मब कहीं, विज्ञान, विज्ञान, विज्ञान देख पड़ता है। जापान का प्रायः कोई भी काम, कोई भी शिक्षा विभाग, कोई भी व्यवसाय, विज्ञान से खाली नही । जापान के समरवीर समुराई बड़े ही बहादुर और रण-कुशल हैं । परन्तु यदि जापान विज्ञान का आश्रय न लेता तो पश्चिमी की प्रबल पराक्रम फ़ौज के सामने समुराइयों की ममर-कुशलता कुछ काम न देती । यदि जापान में विज्ञान का प्रवेश न होता तो वह विदेशियों के द्वारा अब तक पददलित हो गया होता, उमका बालसूर्यधारी झण्डा गिर गया होता; उसकी जातीयता का सर्वनाश हो गया होता; पराक्रमी ममुराइयों के खून की नदियाँ बहकर शान्तसागर में शान्त हो गई होती; और अपने पुराने वेढंगे शास्त्रों को लेकर अर्वाचीन शस्त्रधारी विदेशियों के सामने जापान के देश-भक्त जापानी एक एक करके कट गये होते । परन्तु विज्ञान ने जापान को इस प्रलयंकर विनाश से बचा लिया। जापान की गवर्नमेण्ट का ध्यान वैज्ञानिक शिक्षा की तरफ़ सबसे अधिक है। यदि रेल, तार, टेलिफ़ोन, जहाज और हथियार बनाने के कारखाने, खानें, फ़ौजी और यंजिनियरी स्कूल जापान में न होते तो जैसी फ़ौज इस समय जापान के पास है वैसी कदापि न होती । और यदि होती भी तो निर्बल होती। रूस-जापान की लड़ाई ने इस बात को अच्छी तरह साबित कर दिया है कि जातीय उन्नति के लिए जितने बड़े बड़े सार्व- जनिक काम किये जायें, विज्ञान का बीज उनमें जरूर होना चाहिए । यदि जापान रेल न बनाता तो थल की राह से वह फ़ौज और फ़ौजी सामान जल्द न भेज सकता । यदि वह सब तरह के जहाज न रखता तो समुद्र पार करके कोरिया और मंचूरिया में वह अपनी फ़ौज न ला सकता । तार और टेलिफ़ोन के बिना यथेष्ट शीघ्रता के साथ ख़बरें न भेजी