पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१०४

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100 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली जा सकतीं। हथियार और जहाज बनाने के यदि कारखाने न होते तो वह एक दिन भी रूस का मुकाबला न कर सकता । बे-तार की तारबरक़ी और गुब्बारों तक से जापान ने यथेष्ट काम लिया है । युद्धविद्या, यंत्रविद्या, रसायन-शास्त्र, वैद्यक शास्त्र, गैस, बिजुली, इत्यादि से सम्बन्ध रखने वाली एक भी बात ऐसी नहीं जिसमें जापान, योरप और अमेरिका से किसी तरह कम हो । पश्चिमी विद्या, विज्ञान और सभ्यता को जापानी साँचे में ढाल कर ही जापान चुप नहीं रहा। उसने उसके भी आगे कदम बढ़ाया है । जापान अब अपने जहाज आप ही बनाने लगा है । उसके बनाने में उसने नई नई युक्तियों से काम लिया है । अनेक बातें उसने ऐसी की है जो और शक्तियों के जहाजों में नही पाई जातीं। जहाजो से यहाँ मतलब उन जलयानों से है जो आजकल सभ्य शक्तियाँ लड़ाई के लिए बनाती और तैयार रखती हैं । जापान का जहाज़ी बेड़ा देखकर इंगलैण्ड भी उमकी तारीफ़ करता है। जल- शक्ति में इंगलैण्ड की बराबरी कोई देश नहीं कर सकता। इंगलैण्ड के पास बैटलशिप नामक प्रचण्ड लड़ाकू जहाज़ो की संख्या 50 के ऊपर है ! पर और शक्तियो के पास 16 से अधिक नहीं । अतएव इंगलैण्ड के समान परम पराक्रमी देश जब जापान की जलसेना और जहाज़ी बेड़े की तारीफ़ करता है तब उसमें अवश्य ही कोई वैज्ञानिक विशेपता होगी । जापान ने यद्यपि युद्धविद्या इंगलैण्ड और जरमनी से ही सीखी है; परन्तु उसने उसमें अब इतनी अधिक उन्नति कर ली है कि इंगलैण्ड ने हर साल कई अफ़सर जापान भेजना निश्चित किया है । वे वहाँ जापानी युद्ध-कौशल की शिक्षा प्राप्त करेंगे। गुरु गुड़ ही रहा, चेला खाँड़ हो गया ! एक अंगरेजी सामयिक पत्रिका का अंगरेज लेखक कहता है कि विज्ञान के बल से जापान ने अपने जहाजों में कई एक ऐसी उन्नतियों की है जिन्हें देखकर संसार भर के जलयुद्ध-विद्या-विशारद चकित हो जाते हैं । जापान की जल-सेना के अफ़सर अपने अपने काम में इतने होशियार हैं कि अनेक बातों में वे इंगलैण्ड को भी अब सबक़ दे सकते हैं । यह सब विज्ञान-वृद्धि की महिमा है । इस पर भी जापान हर साल हर तरह की विज्ञान शिक्षा के लिए योरप और अमेरिका को अनेक होनहार युवकों को भेजता है। विद्या और विज्ञान में वह किसी देश से पीछे नहीं रहना चाहता । जापान मे थोड़े ही समय में अनेक अद्भुत अद्भुत आविष्कार भी किये है । जापानियों के बराबर देशभक्त और कोई पृथ्वी की पीठ पर नहीं है । देशभक्ति से प्रेरित होकर विद्या और विज्ञान के बल पर वे असम्भव को सम्भव कर दिखाते है। जापान भी एशिया में है। हिन्दुस्तान भी एशिया में है । अधिकांश जापानी बौद्ध हैं और बौद्ध मत के प्रवर्तक की जन्मभूमि हिन्दुस्तान ही है । प्रायः हिन्दुस्तानियों की तरह जापानी भी ठिंगने होते हैं। जापानि यो और हिन्दुस्तानियों के रूप, रंग में भी बहुत कुछ साम्य है। हिन्दुस्तानियों के समान जापानी भी निरुपद्रवी, सहनशील, परोपकारी, दयालु, माता- पिता के भक्त और सरल स्वभाव होते हैं । परन्तु दोनों में असमानता भी है। जापानी स्वाधीन हैं, हिन्दुस्तानी पराधीन । जापानी देशभक्त हैं, हिन्दुस्तानी देशभक्त नही । भापान में एकता है, हिन्दुस्तान में एकता का अभाव है । वैज्ञानिक शिक्षा के लिए सात