पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१०८

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104 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली है। इस चरित की तीन जिल्दें हैं । इसके लिए एक पुस्तक-प्रकाशक ने डेढ़ लाख रुपये इन्हें दिये हैं ! 1883 में पहले पहल इन्होंने 'न्यू कैसल ऑन टाइन' नामक नगर की तरफ़ से पारलियामेंट में प्रवेश किया। तब से बराबर आज तक वहाँ बने हुए हैं। इंगलैण्ड के भूतपूर्व प्रधान मन्त्री, परलोकवासी ग्लाडस्टन साहब, के ये चेले हैं। ये भी उदार दल वालों में से हैं । सुनते हैं, इनका सिद्धान्त यह है कि मनोविकारों के वश न होकर जो बात न्याय्य और देशहितकारी मालूम हो वही करनी चाहिए । इस सिद्धान्त का उल्लेख इन्होंने भारत-सचिव होने के पहले, आयरलैंड और भारत के सम्बन्ध में व्याख्यान देते समय, कई दफे दिया भी है । आयरलैंड के यह चीफ़ सेक्रेटरी रह चुके हैं। उस पद पर रह कर उस देश का बहुत कुछ हित इन्होंने किया है। भारत और आयरलैण्ड की कई बातों में थोड़ी बहुत समता है । सम्भव है आयरलैण्ड की तरह भारत की शिकायतें भी दूर करने की ये चेष्टा करें। और कुछ की भी है। 'वन्दे मातरम्' कहने की इन्होंने अनुमति दिलाई है, 'स्वदेशी' मामलों में शामिल होने के कारण जो लड़के बंगाले के स्कूलों से निकाल दिये गये थे उन्हें इन्होंने बिना किसी शर्त के फिर से भरती करा दिया है । फुलर साहब की आक्षेपयोग्य काररवाइयों की तीव्र आलोचना भी इन्होंने की थी। उनका इस्तीफ़ा देना भी इन्हीं की दृढ़ न्यायपरता का फल था। सुनते हैं यहां के कौंसिलों में हिन्दुस्तानी मेम्बरों की संख्या भी ये बढ़ाना चाहते हैं और विलायत में अपनी कौंसिल में भी एक आध हिन्दुस्तानी रखना चाहते हैं। अलीगढ़-कालेज के मारिसन साहब को रक्खा भी है। इस देश की प्रजा के नायकों को मार्ले साहब से बहुत कुछ आशा थी, पर कई बातों में उन्हें नाउम्मेदी हो गई हैं । हिन्दुस्तानियों के मांगे हुए स्वत्व देने में माले साहब को अनेक प्रकार के विचार करने पड़ते होंगे । इंगलैण्ड का लाभ उन्हें पहले देखना पड़ता होगा, भारत का पीछे। फिर जो बातें सैकड़ों साल से होती आई हैं उनको एकदम से बदल देना सहज भी तो नहीं है । व्यवहार और नीति के झूले में इन्हें झूलना पड़ता है। बहुत सी बातें ऐसी हैं जिनके करने से भारत का तो हित है, पर इंगलैण्ड का अहित । ऐसी बातें करने में इन्हें ज़रूर ही आगा पीछा होता होगा । इसी से इनकी उदार नीतिगभित उक्तियाँ इस देश के लिए कम फलवती होती हैं। भारत को इस समय व्यापार-प्रतिवन्ध अपेक्षित है-जिसमें विदेशी माल की आमदनी कम हो जाय । पर हाल में जो कालोनियों का कान्फरेन्स लन्दन में हुआ था उसमें इसके खिलाफ़ काररवाई हुई थी। इसका भी कारण वही इंगलण्ड का हित-साधन है । लाला लाजपतराय को जो देश से निकाल दिये जाने की सजा मिली है इसका भी यही कारण हो सकता है। 6 जून को पारलियामेंट में हिन्दुस्तान के 'बजट' पर बहस करते समय इन्होंने अपना असली रूप दिखा दिया है । आप यहाँ वालों के लाभ के लिए कुछ सुधार के काम जरूर करना चाहते हैं; पर ऐसा कोई काम आप न करेंगे जिसके कारण अंगरेजी राज्य को धक्का लगे। लाला लाजपत राय और अजीतसिंह का देश-निर्वासन, किसी किसी जिले में सभायें करने की मनाई,