पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/११०

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शान्ति-सभा के शान्ति प्रेम का एक उदाहरण रूस-राज के प्रयत्न से 1899 से एक आन्तर्जातिक राजकीय सभा हालैंड के हेग नगर में हुई थी। उसमें और और बातों के सिवा संसार में शान्ति स्थापन करने के अभिप्राय से नये नये कायदे-कानून बनाये गये थे। उनके होते भी रूस और जाहान का भीषण युद्ध हो गया। अगस्त 1907 से फिर हेग में ऐसी ही एक सभा हो रही है । सब स्वतंत्र देशों के प्रतिनिधि वहाँ इकट्ठे हैं । युद्ध के समय अन्याय और निर्दयता न होने के लिए इस बार पुराने नियम फिर से नये किये गये हैं और इस बात पर खूब जोर दिया गया है कि पहले तो युद्ध ही न हो और यदि हो तो ज़रा भी निष्ठुरता न की जाय। पर जब युद्ध होता है तब ये सब नियम तिनके से भी अधिक तुच्छ समझे जाते हैं। कोई इनकी कुछ भी परवा नहीं करता । इसका एक उदाहरण 'रिव्यू आफ़ रिव्यूज' के सम्पादक स्टीड साहब ने अपनी मासिक पुस्तक में दिया है । आप भी इस दफ़े की हेग-सभा में दर्शक के तौर पर हाज़िर हैं। जिन राज्यों के प्रतिनिधियों ने हेग में बैठकर सभा की, और दस्तावेजो पर दस्तखत करके इस बात की घोषणा की, कि युद्ध में अन्याय न हो, लूट न हो, व्यर्थ प्रजा- पीड़न न किया जाय, किसी के साथ निर्दयता का व्यवहार न किया जाय, उन्ही में से पाँच मात राज्यो की सेना ने जब उस साल चीन पर चढ़ाई की तब उन प्रतिज्ञाओं को उन्होने बालाय-ताक़ रख दिया। इस विषय में स्टीड साहब से एक ऐसे चीन-वासी से बातचीत करने का मौक़ा हेग में आया जो उस साल लड़ाई के दिनों में पेकिन में हाजिर था। उससे साहब ने पूछा कि कहिए इन युद्ध सम्बन्धी नियमों का परिपालन पेकिन में हुआ था? - "जरा भी नहीं। सबने लूट-खसोट की। पर सबने सब चीजें नहीं लुटीं । जापानियों ने सिर्फ अमीरों को लूटा । पेकिन के राजकीय खजाने में छापा मारकर मारी चाँदी लूट ली और टोकियो को भेज दी। बेचारे जर्मन लोग देर से पहुंचे । उनको और कुछ नहीं मिला। मिला सिर्फ काठ का सामान-मेज, कुरमी, बकस आदि" । "परन्तु, क्या सब देशों की सेना ने लूट मार की ?" अमेरिका वालों ने सबसे अच्छा व्यवहार किया। उन्होने लूट पाट नही की। उनके जनरल ने हुक्म दे दिया था कि जो लूट मचावेगा वह गोली मार दिया जायगा । हिन्दुस्तानी सिपाहियों और रूस के क़ज़ाक़ लोगों ने सबसे जियादह लूटा । तथापि मबने थोड़ा बहुत माल मारा । कोई कोरा नही रहा"। "तो युद्ध के नियम नहीं पालन किये गये" ? "नहीं, बिलकुल नहीं । जब सब देशों की फौजों ने पेकिन में प्रवेश किया तब मुझे गलियों में पड़े हुए मुर्दे गाड़ने में मदद देनी पड़ी। हम सबने मिलकर 5000 लाशें -