पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१२४

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120 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली वज़न 106 ही कैरट रह गया। इस हीरे का इतिहास पाठकों को मालूम ही होगा। इसलिए पिष्ट-पेषण की क्या ज़रूरत ? प्रिंस आरलफ़ नाम का हीरा भी एक बहुत प्रसिद्ध हीरा है। वह रूस-राज के पास है। उसका आकार गुलाब जैसा है। उसका वजन 1942 कैरट है। फ्लाटाइन नामक हीरा पीले रंग का है। वह आस्ट्रिया के राजभवन की शोभा बढ़ा रहा है। उसका वजन 133 कैरट है । स्टार आफ़ साउथ अर्थात् 'दक्षिण का तारा' नाम का हीरा ब्रेजील में एक हबशी को 1853 ईसवी में मिला था। उसका वजन 254 कैरट है। दक्षिणी अमेरिका में जितने हीरे निकले है, यह उनमें सबसे बड़ा है। काटने पर इसका वजन 124 कैरट रह गया है । रूस-राज के पास एक और बहुत बड़ा हीरा है । उमका नाम है ग्रेट (बड़ा) मोग़ल। वजन उसका 279 कैरट है। साँसी नामक हीरा भी बहुत दिनों तक रूस-गज के पास था। पर 1799 में उसे एक जौहरी ने 2,10,000 रुपये में मोल ले लिया। यह हीरा कई आदमियो के पास रह चुका है। यह साँसी नाम के एक आदमी के पास था। इसीलिए इसका नाम सांसी पड़ा। एक दफ़े उस सांसो ने इसे गजा तीमरे हेनरी के पास भेजा। जो आदमी उसे लेकर चला, उसे रास्ते में चोरों ने मार डाला । पर उसने मरने के पहले ही वह हीग निगल लिया था; इससे वह चोरो को न मिला । सांसी ने उसे उस आदमी के मेदे को फाड़ कर निकाल लिया। इस तरह कोई चौदह पन्द्रह हीरे इस समय संसार में बहुत क़ीमती समझे जाते हैं। पर यह नया हीग द्युति और विशालता में उन सबसे बढ़कर है । [अक्टूबर, 1905 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'संकलन' पुस्तक में संकलित ।