152 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली - बड़ी खबरदारी के साथ रहे; यहाँ तक, कि आप शायद ही कभी दिन को बाहर निकले हों। इसके बाद आप तिब्बत के अन्यान्य भागों का भी अनुसन्धान करके, करीब एक बरस बाद, दार्जिलिंग लौट आये। आपने सिक्किम देश के लामा के वेश में तिब्बत में प्रवेश किया था। आपके लौट आने पर तिब्बत-सरकार को आपकी यात्रा का असली मतलब मालूम हो गया। सारे देश में इस बात की जांच होने लगी कि कौन कौन से मनुष्यों ने तिब्बत में आपकी सहायता की थी और आपको अपने मकान पर आश्रय दिया था। जिमके ऊपर सरकार का सन्देह हुआ वह कैद कर लिया गया और उसकी सारी जायदाद जब्त कर ली गई । जिनका दोष भारी समझा गया उन्हें फांसी की सजा दी गई । इसका एक उदाहरण लीजिए। तिब्बत में सेंगचेन दोरजेचन नाम के एक वृद्ध लामा थे। ये अपनी विद्वत्ता के लिए देश भर में विख्यात थे। लोग इन्हें बड़े आदर की दृष्टि से देखते थे। शरच्चन्द्र ने कुछ काल तक आप ही से बौद्ध मत की शिक्षा ग्रहण की थी। लामा के मित्र उनसे कहा करते थे-"महाशय ! आप इस शरच्चन्द्र का साथ छोड़ दे। नहों तो आपको भारी विपद् में फंसना पड़ेगा" । किन्तु आपका उत्तर सुन कर सभी चुप हो जाते थे । आप कहते थे- "शरच्चन्द्र इस देश में चाहे धर्म-पुस्तको की चोरी करने आया हो, चाहे वह किसी राज्य का जासूम हो, इससे मुझे कोई मतलब नहीं । बौद्ध मत का प्रचार करना मेरा कर्तव्य है; और अपना कर्तव्य-पालन करने में मुझे मौत की भी परवा नहीं"। किन्तु जब तिब्वत-सरकार को मालूम हुआ कि पूर्वोक्त लामा महाशय ने भी शरच्चन्द्र की सहायता की थी तब उसने आज्ञा दी कि जल में डुबो कर उनके प्राण ले लिये जाये ! कावागुची नामक जापानी तिब्बत-यात्री ने, जिसके विषय में मुझे आगे बहुत कुछ लिखना है, इस हृदयविदारक दृश्य का वर्णन इस प्रकार किया है- “सरकार की कठोर आजा सुन कर मंगचेन महाशय को कुछ भी रंज न हुआ। नदी के किनारे एक चट्टान पर बैठ कर आप अपने प्रसिद्ध धर्म-ग्रन्थ का पाठ करने लगे। कुछ देर बाद, जो लोग उन्हें जल में डबोने के लिए वहाँ प्रस्तुत थे उनकी ओर देख कर 'डम पवित्र धर्म-ग्रन्थ का पाठ ममाप्त कर लेने पर मैं तुमको अपनी तीन उँगलियों से इशाग करूंगा। इशारे के माथ ही तुम मुझे एक रस्सी से बांध कर नदी में फेक देना । मुझे मृत्यु से कुछ भी भय नहीं।' 'यथाममय आपने उन लोगों को इशाग किया; किन्तु व्यर्थ ! एक भी मनुष्य उनकी और न वडा । नब आपने कहा -'मेग अन्तिम काल आ पहुंचा है। देर करने की जरूरत नहीं । सरकारी आज्ञा के अनुसार मुझे तुम शीघ्र ही जग में फेंक दो। मेरी आपने कहा 11 1. कावागुची के बाद स्वीडन (Sweden) देश के वासी डाक्टर स्वेन हेडिन (Sven Hedin) ने भी काश्मीर से, 1906 ईसवी में, तिब्बत-प्रवेश किया था।
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