पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१६०

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156 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली 22 नवम्बर को कावागुची ब्रह्मपुत्र को पार करके तिब्बत की तीसरी राजधानी लहार्वे नगर में पहुँचे । तिब्बत की दूसरी राजधानी शिगात्जे नगर भी यहाँ से कुछ ही दिनों का रास्ता रह गया था। रास्ते में कावागुची ने तिब्बत के प्रसिद्ध शाक्य मठ का दर्शन किया। इस मठ का वर्णन करते हुए आपने लिखा है-"यहाँ के पुस्तकालय में बौद्ध धर्म से सम्बन्ध रखने वाले कितने ही प्राचीन ग्रन्थ आज तक विद्यमान हैं। इनमें से बहुत से ग्रन्य तो नीले काग़ज़ पर सुनहले अक्षरों में लिखे हुए हैं, और बहुत से संस्कृत भाषा में ताल-पत्रों पर" । 5 दिसम्बर को कावागुची शिगाजे नगर में पहुंचे। यहाँ 'सुमेरुगिरि' नाम का एक बड़ा मन्दिर है। उसके मुख्य लामा की देश भर में बड़ी इज्जत है । कभी कभी दलाई लामा के मर जाने पर आर ही को कुछ काल तक उनका पद-ग्रहण करना पड़ता है । 15 दिसम्बर को कावागची इस स्थान से भी बिदा हुए । बड़ी लम्बी यात्रा के बाद वे 1901 की 21 मार्च को लासा पहुंचे। कावागुची को अपनी यात्रा मे बड़ी बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। विकट पहाड़ी रास्ते से जाते समय कहीं आप नीचे गिरने से बच गये । कहीं जल के प्रबल वेग में बह जाने से देव ने आपकी रक्षा की। कहीं निर्जन वन में आपको निर्दयी लुटेरो के दल का सामना करना पड़ा । कहीं बफ़िस्तानी मैदान में आपको सारी रात बितानी पड़ी। किन्तु दृढ निश्चय के सामने सभी बाधायें आप ही आप दूर हो गई; और, जिस उद्देश से कावागुची ने यह परिश्रम उठाया था वह अन्त में सफल हुआ। लासा पहुंचने पर कावागुची वहाँ के सेरा-मठ में रहने लगे । यह मठ तिब्बत का मनसे प्रसिद्ध विद्यालय है। इसमें रहने वाले पुजारियों की संख्या क़रीब सात हजार है । इम देश में पुजारी दो प्रकार के हैं-विद्यार्थी और सैनिक । यहाँ की पूरी पढ़ाई 20 बरम में समाप्त होती है। जो विद्यार्थी नये आते हैं उनकी परीक्षा पहले न्याय-शास्त्र में ली जाती है । पूछा जाता है क्यों, बद्ध मनुष्य थे अथवा देवता? यदि देवता थे तो मृत्यु को क्यों प्राप्त हुए ? यदि विद्यार्थी चतुर होता है तो उत्तर देता है-बुद्ध स्वयं अमर थे, किन्तु वे अपने मनुष्य-शरीर से ही मृत्यु को प्राप्त हुए। यही नहीं, उसे यह भी कहना पड़ता है कि उनके तीन शरीर थे-धर्मकाय, सम्भोगकाय और निर्माणकाय । कावागुची ने अपने देश में आयुर्वेद का कुछ अध्ययन किया था। वे सेरा-मठ में रोगियो का इलाज भी करते थे । इममे लोगो में आपकी बड़ी प्रमिद्धि हुई। खुद दलाई लामा ने उन्हें अपने प्र.माद में बुलाकर उनसे भेंट की। दूर दूर से लोग उन्हें निमन्त्रण देकर अपने मकान पर बलाने लगे। किमी किमी ने तो आपको ख़ास बुद्ध देव का अवतार मान लिया । बहुत मे सरकारी अफ़मरो से भी आपकी मित्रता हो गई। कुछ दिन बाद सेग-भठ को छोड़ कर आप दलाई लामा के एक मन्त्री के मकान पर रहने लगे। वहाँ तिब्बत के अर्थ-मचिव मे भी आपकी जान-पहचान हो गई । इस प्रकार उन्हें उस देश के राजनैतिक विषयों को भी समझने का अच्छा मौका मिल गया। तिब्बत मे मन्वन्ध रखने वाली प्रायः सभी बातों का वर्णन कावागवी ने अपनी