पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१७७

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निष्क्रिय प्रतिरोध का परिणाम | 173. जारी हुआ, तभी से हिन्दुस्तानियों ने अपनी पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार निष्क्रिय प्रतिरोध का प्रारम्भ किया। इस कारण सैकड़ों को नहीं हजागे को जेल जाना पड़ा। पर वे लोग अपनी प्रतिज्ञा से विचलित न हुए। इस पर कानून का बनाया जाना व्यर्थ हुआ देख सरकार ने यह निश्चय किया कि यदि हिन्दुस्तानी इच्छानुसार अपने नामो की रजिस्टरी करा लें तो यह कानून जारी न किया जायगा। पर हिन्दुस्तानियो ने निष्क्रिय प्रतिरोध बन्द न किया। सरकार और भी चिढ गई । उमने एमिग्रेशन एक्ट नाम का एक और कानून जारी कर दिया । इसके कारण शिक्षित भाग्नवासियों का ट्रामवाल में घुमना असम्भव मा हो गया। तब वे लोग इच्छानुमार रजिस्टरी कग लेने पर गजी हो गये । सुनते है, उनसे गवर्नमेंट ने कहा कि रजिस्टरी कग लो; कानून मंसूख़ हो जायगा। पर रजिस्टरी हो चकने पर भी कानून ज्यों का त्यो रहा । इस पर हिन्दुस्तारियो ने और भी दृढता के माय निष्क्रिय प्रतिरोध करना आरम्भ किया। नेटाल के हिन्दुस्तानी भी ट्रान्सबाल वाले अपने भाइयों से आकर मिल गये । फिर एक भाग मभा हुई। मभा में कानून न मानने की प्रतिज्ञा हुई । उधर मरकार ने भी हिन्दुस्तानी नेताओं को देश से निकाल देने का विचार पक्का किया । फल यह हुआ कि मैकडों हिन्दुस्तानी ट्रान्मवाल से हिन्दुस्तान को भेज दिये गये। कानून न माननेवाले सैकड़ों आदमी जेलो में लूंस दिये गये। स्थिति बड़ी भयकर हो गई । हिन्दुस्तानी अपनी प्रतिज्ञा पर और भी दृढ़ हो गये । स्त्रियाँ तक जेल जाना अपना कर्तव्य समझने लगीं अपने पतिया और भाइयो को वे निष्क्रिय प्रतिरोध जारी रखने के लिए उत्माह दिलाने लगी। प्रजा-मत 1909 ईमवी में हिन्दुस्तानियों ने अपना एक प्रतिनिधि-दल हिन्दुस्तान को और दुमरा इंगलैंड को भेजना चाहा। वे दोनों दल रवाना होने ही वाले थे कि सरकार ने उन्हें पकड़ लिया और दल के सभी सभ्यों को जेल भेज दिया। पर हिन्दुस्तानियों ने, कुछ समय बाद, अपना एक प्रतिनिधि-दल इगलैंड भेज दिया। उसने वहाँ पहुँच कर खुब आन्दोलन किया। हिन्दुस्तान को अकेले मिस्टर पोलक ही भेजे गये । उन्होने यहाँ श्रीयुत गोखले की भारत-सेवक-समिति (Servants of India Society) की सहायता को खूब जाग्रत किया। सहायता भी उन्हे खूब मिली। रतन जे० ताता नामक प्रसिद्ध पारमी सज्जन ने अपने भाइयो को धन द्वारा अच्छी सहायता दी। हिन्दुस्तान की गवर्नमेट के ज़ोर देने पर, विलायत की बड़ी सरकार ने बीच मे पड़कर देश-निकाले की सजा पाये हुए हिन्दुस्तानियो को फिर ट्रान्सवाल लौट जाने की आज्ञा दिलाई। इस बीच में बेचारे हिन्दुस्तानियो को अनन्त यातनायें भोगनी पड़ी। इसके बाद केप कालोनी, नेटाल, ट्रान्सवाल और आरेंज-फ्री-स्टेट ये चारो प्रदेश एक में जोड़ दिये गये और सबके ऊपर एक गवर्नर जनरल नियत हुआ । सबका नाम हुआ-सम्मिलित राज्य । तब, 1910 ईसवी में, ब्रिटिश गवर्नमेंट ने म्मिलित राज्य की सरकार को लिखा कि 1907 ईसवी वाला कानून रद्द कर देना चाहिए। पर वह