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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१८७

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पेरिस / 183 - पृथ्वी के पेट में भी है । वह भीतर ही भीतर आवागमन करती है और बिजली की शक्ति से चलती है । कई कम्पनियो की रेलें पेरिस से छूटती हैं। उनके पांच प्रधान स्टेशन हैं। फ्रांस का सबसे बड़ा नगर पेरिस ही है। वहां सैकड़ों लखपती और करोड़पती रहत हैं । व्यापार-व्यवसाय और उद्योग-धन्धे खूब उन्नत हैं । सोने और चाँदी का काम बड़े विस्तृत रूप में होता है । वहाँ के जैसे जौहरी और किसी देश में नहीं। हीरे और पन्ने आदि नक़ली रत्न, जो हिन्दुस्तान के बाजारों में देख पड़ते हैं, वहीं के कीमियागरों और जौहरियों के आविष्कार है। विलास की मामग्री तैयार करने में कोई देश-कोई नगर -परिम की बराबरी नही कर सकता। सोने-चांदी के जेवर ही नहीं, चित्र-विचित्र पोशाक और लकड़ी का सामान भी वहाँ बहुत ही बढ़िया तैयार होता है । इन सब चीज़ों के कारखानों में 5 लाख से कम आदमी-कारीगर, मजदूर आदि-नही काम करते । युद्ध के कारण इसके बाज़ारो और नाटक-चरों आदि की शोभा हाल में कुछ कम हो गई थी। पर अब फिर वे अपने पूर्व-रूप को प्राप्त हो गये हैं, या हो रहे हैं। पास 20 भागों में विभक्त है। हर भाग मेअर नामक एक एक अफ़सर के अधीन है। प्रत्येक मेअर की सहायता के लिए 3 से लेकर 5 तक सहकारी अफ़सर या सहायक हैं। 1910 ईसवी में नदी की बाढ़ से पेरिस का बहुत सा अंश पानी के भीतर चला गया था । कोई 2 लाख आदमियों को इस बाढ़ से कष्ट उठाना पड़ा। लगभग 3 करोड़ रुपये की हानि हुई। पेरिस बहुत पुराना शहर है। रोम-नरेश सीज़र के समय में उसका नाम था लूटेशिया। चौथी शताब्दी में रोम का बादशाह जूलियन वहाँ रहता था। उसका पेरिस नाम पड़े कोई पन्द्रह सौ वर्ष हुए । याद रहे, वह इमसे भी बहुत पुराना है । अपने जन्म से अब तक उस पर अनेक जातियों का आधिपत्य रहा-अनेक आक्रमण उस पर हुए। कितनी ही दफ़े वह उद्ध्वस्त हुआ और कितनी ही दफ़े उसने पुनरुज्जीवन प्राप्त किया। नवी शताब्दी में तो शत्रुदल उसे 13 महीने तक घेरे पड़ा रहा । पर उसकी दाल न गली। इन आक्रमणों के कारण हजारों आदमियों को प्राण देने पड़े-भूख से भी और अस्त्राघात से भी । पिछला धावा 1870 ईसवी मे जर्मनीवालो ने किया । वे लोग 4 महीने तक उसे घेरे रहे । तब कहीं, निद्दिष्ट शर्तों पर पेरिस ने आत्मसमर्पण किया। बीस हजार जर्मन सैनिक, मार्च 1871 में, पेरिस के भीतर घुसे और कुछ दिनो तक उसे अपने कब्जे में रक्खा । फ्रांस पर मनमाना दण्ड करने और उससे मनमाने प्रान्त छीनने पर जर्मनी ने पेरिस का पिण्ड छोड़ा । उसका बदला, अब कही. 50 वर्ष बाद, जर्मनी से फ्रांस ले पाया [नवम्बर, 1920 को 'सरस्वती' में प्रकाशित ।]