पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१९

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सम्पादकीय / 15 शास्त्री था। इसने कई संक्रामक रोगों का इलाज ढूंढ़ निकाला था। पागल कुत्ते के काटने से जो रोग होता है, उसकी दवा भी इसी ने ईजाद की थी। मिल और स्पेन्सर की पुस्तको के अनुवाद द्विवेदी जी ने किये थे, जो अपने ममय में बेहद प्रशंसित हुए थे। द्विवेदीजी मिल और स्पेन्सर से बेहद प्रभावित भी थे और उनकी विचारधारा पर इनका प्रत्यक्ष प्रभाव भी पड़ा था । इन दोनों महान् चिंतको की जीवनियाँ बेहद प्रेरक है। फ़ारसी कवि 'हाफिज' एवं 'अलबम्नी' की जीवनियाँ उनके फ़ारमी-जान का प्रत्यक्ष नमूना है । सुल्तान अब्दुल अज़ीज़ के जीवन-चरित के बहाने मुराको के इतिहास एवं उसकी वर्तमान राजनीतिक दशा का चित्रण किया गया है । उसी तरह अमीर हबीबुल्ला ख़ाँ के चरित-चित्रण के माथ अफ़ग़ानिस्तान का एवं अफ्रीका के देश अबीसिनिया का इतिहास और वहाँ के वर्तमान शासक हबशीराज मैन्यलिक के जीवन- चरित को प्रस्तुत किया गया है। इसी तरह का जीवन-चरित फ़ारस के शाह मुज़फ्फ़रुद्दीन का लिखा गया है । विश्व कविता मे आधुनिकता की शुरुआत करने वाले कवि वाल्ट ह्विटमैन एवं विक्टर ह्यूगो की संक्षिप्त जीवनियाँ एवं उनकी कविताओं का सामान्य परिचय भी द्विवेदीजी ने लिखा था, जो इमी भाग में संकलित हैं । भाग पाँच में उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव की विभिन्न लोगों द्वारा की गयी यात्राओं का रोमांचक वर्णन है । इमी भाग में दुनिया के सबसे पुराने ज्वालामुखी पर्वत विस्यू- वियस पर दो लेख हैं एवं इमी विस्यूवियस के विस्फोट से नष्ट हुए प्राचीन युग के पांपियाई नगर का वर्णन भी। साथ ही पुरातत्त्व-सम्बन्धी दो लेख हैं जिनमें से एक डायनासोर पर है। छठे भाग में आदिवासी जन-जातियों पर समाजशास्त्रीय लेख है। इनमें से पाँच अफ्रीकी जनजातियों पर हैं । एक प्रशात महासागर के टापुओं की जन-जातियों पर है । एक मैक्सिको की प्राचीन जन-जाति पर। एक मिशमी जाति पर एवं एक अंडमान- निकोबार द्वीप की जन-जातियों पर । द्विवेदी जी बताते हैं कि इन जन-जातियों के बीच यूरोपीयन देशों के लोगो के पहुंचने पर क्या-क्या कारनामे हुए। ये लेख कहानी पढ़ने का-सा सुख देते हैं। परिशिष्ट में संकलित 'भारतवर्ष का वैदेशिक संसर्ग' लेख के प्रारम्भ में द्विवेदी जी बताते हैं कि कोई भी देश अन्य उन्नत देशों के साथ सम्पर्क रक्खे बिना उन्नति नहीं कर सकता। भारतवासी यदि अवनति के गढ़े से निकल कर उन्नति के शिखर पर चढ़ना चाहते हैं तो उन्हें भी, जापानियों की तरह संसार के सम्पूर्ण सभ्य और उन्नत साथ सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए । इसी में भारतवर्ष का कल्याण है। इसी लेख में आगे वे लाला हरदयाल के एक अँगरेजी लेख का सार-संक्षेप अपनी बात को विस्तार देने के लिए प्रस्तुत करते हैं । परिशिष्ट में संकलित दूसरा लेख 'यूरप इतिहास से सीखने योग्य बातें'