पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

लीग आफ नेशन्स का खर्च और भारत - सन् 1857 के ग़दर की याद कीजिये । उसमें बड़ी-बड़ी नृशंसताएँ हुई थी। कितने ही कत्ले-आम भी शायद हुए थे। पर उन सबका मविस्तर और सच्चा वर्णन कहीं नहीं मिलता । लोगों का कहना है कि ग़दर के इतिहास से पूर्ण जितनी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं उनमें कुछ नृशंस बातें बढ़ाकर लिखी गयी हैं और कुछ पर धूल डाली गयी है । कलकत्ते के ब्लैकहोल और कानपुर के क़त्ल की कथा तो खूब विस्तार के साथ और शायद बढ़ा- कर भी लिखी गयी है । पर गोरों ने कालों पर जो अत्याचार किये हैं उन पर कम प्रकाश डाला गया है और कुछ घटनाओं पर तो बिलकुल डाला ही नहीं गया। अब कोई साठ- सत्तर वर्ष बाद एडवर्ड टामसन (Edward Thompson) नाम के एक अंगरेज़ की उन पुरानी बात। की याद आयी है। उन्होंने अँगरेज़ी में एक पुस्तक लिखकर संयुक्त राज्य (अमेरिका) के न्यूयार्क नगर से प्रकाशित की है । उसका नाम है-The Other Side of the Medal. इस पुस्तक में उन्होंने गोरों के उन क्रूर कर्मों का वर्णन किया है जो सिपाही-विद्रोह की इतिहास-पुस्तकों में किसी कारण से छूट गये हैं या छोड़ दिये गये हैं। यह बात हमें 'माडर्न रिव्यू' में प्रकाशित उस पुस्तक की एक समालोचना से ज्ञात हुई। इस समालोचना ही को पढ़कर भारतवासी पाठको के रोंगटे खड़े हो सकते है, मूल पुस्तक पढ़ने पर उनके हृदयों की क्या दशा हो सकती है, यह तो पढ़ने ही से ज्ञात हो सकेगा। नये जीते हुए देशों के निवासियों पर विजेता जाति, कभी-कभी भीषण अत्याचार कर बैठती है, यह तो इतिहास-प्रसिद्ध ही है। मिस्र, सीरिया, कांगो, रीफ प्रान्त, बालकन प्रदेश, कोरिया आदि के निवासियों के साथ कैसे-कैसे सलूक किये गये है, यह बात इतिहास-प्रेमियों और समाचार-पत्रों के पाठको से छिपी नहीं : योरप के कितने ही देश पशु-बल में बहुत समय से प्रबल हो रहे हैं। इसी से उन्होंने अनेक अन्य निर्बल देशो को जीतकर उन पर अपना प्रभुत्व जमाया है। इस प्रभुत्व-जमौव्वल के कारण उन्हें बहुधा वहाँ के अधिवासियों पर ज़ोरो-जुल्म भी करना पड़ा है और अब भी करना पड़ता है। चीन में इस समय क्या हो रहा है और बाक्सर-विद्रोह के समय क्या हुआ था, घटनाएं उसी पशुबल और आतंक-जमौव्वल के उदाहरण हैं । भारत भी इसका शिकार हो चुका है और किसी हद तक अब भी इसका शिकार हो रहा है। परन्तु इस पशुबल से बली योरप के कुर देश, बहुत समय से परस्पर भी लड़ने- भिड़ने की ताक में चले आ रहे है । कारण वही प्रभुत्व-लिप्सा है। मेरा ही प्रभुत्व सबसे बढ़ा चढ़ा रहे; मैं ही अधिकाधिक निर्बलों को पदानत करता चला जाऊँ; तू दूर रह; तू मेरे काम में विघ्न न डाल-बात यह । योरप में कुछ समय पूर्व जो महायुद्ध हुआ था उसका कारण भी यही लिप्सा थी। जर्मनी अपना बल बढ़ा रहा था। औरों को यह बात पसन्द न थी। बस, सब प्रतिस्पर्धी अपना-अपना गुट बनाकर लड़ पड़े। जिनका ये सब