पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१९२

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188 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली पक्ष प्रबल था उन्होंने छल-बल से किसी तरह जर्मनी को हरा दिया। पर उनकी इस जीत ही ने उनके कान खड़े कर दिये। उन्होंने कहा, इस युद्ध से तो धन-जन की इतनी हानि हुई है; और भी कोई ऐसा ही युद्ध छिड़ गया तो हमलोगों का सर्वनाश ही हो जायगा- हमारे देश एकदम उद्ध्वस्त हो जायेंगे। यह सोचकर उन्होंने 'लीग आफ़ नेशन्स' नाम की एक संस्था बना डाली। उसे एक प्रकार की शान्ति-स्थापक सभा या पंचायत कहना चाहिये । उसका सदर मुक़ाम स्विट्जरलैंड के एक शहर में करार दिया गया। वहाँ बड़े- बड़े दफ्तर खुल गये । सैकड़ों कर्मचारी रक्खे गये । बड़ी सभा के मातहत अनेक छोटी- छोटी कमिटियाँ भी बना डाली गयीं। इस सभा के अधिवेशन समय-समय पर हुआ करते है । अन्तर्जातीय राजकीय विषयों पर विचार होता है, नियम निर्धारित होते है और पारस्परिक झगड़े आपस ही में निपटाने की चेष्टा की जाती है । अब तक जर्मनी इस सभा का सभासद् न था । अब वह भी हो गया है । जर्मनी, इंगलैंड, फ्रांस, इटली और जापान ये पाँच बलाढ्य राज्य है। इनके प्रतिनिधियो को इस सभा में स्थायी सभासदत्व प्राप्त है। अमेरिका के भी कितने ही छोटे-छोटे राज्यो के प्रतिनिधियों को इसमें जगह मिली है । चीन, फारिस, तुर्को आदि के भी प्रतिनिधि इसमें शामिल हैं। पर बोलबाला बड़े राज्यों ही के प्रतिनिधियों का है । अवशिष्ट राज्यो को अस्थायी ही सभामदत्व प्राप्त है । सो भी कुछ-कुछ समय बाद । प्रतिनिधित्व के नियम इस खूबसूरती से बनाये गये है जिसमें काम पड़ने पर छोटे-छोटों की दाल न गले, बड़े अर्थात् बलाढ्य राज्य ही मनमानी कर सकें । सो शान्ति स्थापना की चेष्टा करने वालों ने यहाँ भी अपनी स्वार्थपरता का पूरा ख़याल रक्खा है । अतएव कहना चाहिये कि यह शान्ति- मभा केवल योरप के कुछ देशो के हाथ का खिलौना है। उन्हीं ने अपने मतलब की मिद्धि के लिये इसकी सृष्टि की है। इसी से अमेरिका के राज्य इसमें शामिल नही हुए । इममें आधिक्य और जोर जापान और योरप ही के कुछ देशो का है। इसकी कुछ काररवाइयों से नाराज़ होकर योरप के भी एक देश अर्थात् स्पेन ने इसका साथ अभी हाल ही में छोड़ दिया है। इमके नियमों में एक नियम यह भी है कि यदि कोई देश किमी देश-विशेष पर अकारण ही, अथवा किमी क्षुद्र कारण से आक्रमण करे तो शान्ति- सभा उसकी रक्षा करेगी। पर गैफो के सरदार अब्दुल करीम पर अभी उस दिन फ्रास और स्पेन के तथा सीरिया पर फ्रांस के जो आक्रमण हुए उनसे इस लीग ने उन देशो की रक्षा तो दूर, उन आक्रमणों के विषय मे विशेष चर्चा तक अपने अधिवेशनों में न की। इधर विदेशी गज्यो के विशेपाधिकारों के कारण चीन में जो उत्पात हो रहे है उन पर भी इम मभा ने कोई टीका-टिप्पणी तक न की। कुछ देशो को ऐसे आदेश मिले हैं कि अमुक-अमुक देश पर तुम तब तक प्रभुत्व जमाये रहो जब तक वे देश अपना राज्य आप करने के योग्य न हो जायँ। ऐसे प्राप्ताधिकार देश (Mandatory Powers) कहाते हैं। अपने अधिकार में लाये गये देशों या जातियों पर ये लोग कभी-कभी बड़ी-बड़ी सख्तियाँ करते हैं। उस दिन इन लोगों ने अपने-अपने अधीन देशों के सम्बन्ध में अपनी- अपनी रिपोर्ट सभा में पेग की। उन पर सभा ने कुछ यों ही-सा एतराज किया और कुछ प्रश्न भी पूछे। इस पर इन अधिकारी देशों ने बड़ी नाराजगी जाहिर की। बात यह कि