लीग आफ़ नेशन्स का ख़र्च और भारत / 189 हम जैसा चाहेंगे शासन करेंगे। पूछने वाले तुम कौन ? ऐसी ही इस सभा में भारत को भी अपने प्रतिनिधि भेजने का अधिकार प्राप्त है । पर इन प्रतिनिधियों को भारतवासी नहीं चुनते। चुनती है ब्रिटिश गवर्नमेंट । इम दिल्लगी पर अनेक समझदार भारतवासियो ने अपनी प्रतिकूलता प्रकट की है। उनका कहना है कि इस सभा के खर्च का एक अंश जब भारत देता है तब अपना प्रतिनिधि वह आप ही क्यों न चुने । सरकार का और भारतवासियों का हित एक नही। इस दशा में खर्च तो भारत से लेना और प्रतिनिधि अपने मन का चुनना, प्रतिनिधित्व की अवहेलना के सिवा और कुछ नहीं। इस दफ़े इस सभा के अधिवेशन में प्रतिनिधित्व करने के लिये गवर्नमेंट ने कपूरथला के महाराजा साहब को भी भेजा था। उन्होंने कुछ ऐसी बातें कही जिन्हें भारतवासियों के कितने ही नेताओं ने बिलकुल ही पसन्द नहीं किया। उधर विलायत में महाराजा बर्दवान ने भी भारतीय प्रतिनिधि की हैमियत से कुछ ऐसी बाते कह डाली, जो उचित नही समझी गयी। गि पर भी यहाँ इस देश में कुछ लोग नक्कारा बजाने फिरते हैं कि इस सभा से बड़े-बड़े लाभ है । इसने भारत का प्रतिनिधि लेकर भारत का गौरव बढ़ा दिया है। सभा में भारतीय प्रतिनिधि को अन्य स्वतन्त्र देशो के प्रतिनिधियों के साथ बैठने का अधिकार प्राप्त हो गया है-वगैरह-वगैरह। परन्तु पास बैठने ही से भारत उन अन्य देशों की बराबरी का नही हो जाता । उनकी और भारत की स्थिति में आकाश-पाताल का अन्तर है । अफ़ीम की पैदावार और रफ़्तनी तथा कल-कारखाने में काम करने वाले मजदूरों के काम आदि के सम्बन्ध में नियम बना देने ही से भारत के हित-चिन्तन की इतिश्री नही हो जाती। जिन बड़ी-बड़ी त्रुटियों के कारण भारतवासियों की दुर्गति हो रही है उनकी तरफ़ तो इस सभा अर्थात् लीग का ध्यान ही नहीं। और यदि वह ध्यान भी देना चाहे तो नहीं दे सकती। कुछ बानक ही ऐसा बना दिया गया है। ऊपर लिखी गयी बात को न भूलिये कि यह लोग योरप के कुछ ही बलाढ्य देशो के हाथ का खिलौना हैं । उन्होंने कुछ बन्धन ही ऐसा बाँध दिया है कि काम-काज के वक्त कसरत राय उन्ही 1 की रहे। अच्छा, जिस लीग से भारत का इतना हित होता है और इतने कम हित होने की सम्भावना आगे भी है उसके लिये इस निर्धन देश को ख़र्च कितना करना पड़ता है। इस लीग के सालाना खर्च का तख़मीना हर साल तैयार किया जाता है। दिसम्बर 1926 के 'माडर्न रिव्यू' में 1916 के 12 महीनों के ख़र्च का जो टोटल दिया गया है वह 9,17,225 पौंड है । याद रखिये, इस मासिक पत्र के सम्पादक लीग के पिछले अधिवेशन में खुद ही हाजिर हुए थे । अतएव उन्होंने यह टोटल लीग के काग़ज-पत्र देखकर ही दिया है, अपनी कोरी कल्पना से नहीं दिया। ये इतने पौंड यदि 15 रुपया फ़ी पौंड के हिसाब से बताये जायें तो 1,37,59,375 अर्थात 1 करोड़ 371 लाख रुपये से भी अधिक हुए। यह इतना ख़र्च 937 अंशों में बांटा जाता है। लीग में शामिल देशों की आबादी, आमदनी और रकबे आदि को ध्यान में रखकर हर देश के लिये अंश नियत किये जाते हैं । चुनांचे इंगलैंड अर्थात् ग्रेट ब्रिटेन के 105 अंश नियत हुए हैं और बेचारे
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