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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१९४

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190/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली भक्खड़ भारत के 56 अंश । आपको यह बता देना चाहिये कि पहले भारत के इससे भी अधिक अंश थे। यह भी तो अभी कुछ ही समय से बहुत कुछ रोने-पीटने से हुई है। ऊपर जो 1 करोड़ 384 लाख का टोटल दिया गया है उसे यदि 937 अंशों में बाँटें तो हर अंश के हिस्से में कोई 14,686॥ रुपया आता है । उसे यदि भारत के 56 अंशों से गुणा करें तो भारत के सालाना देने का टोटल 8,22,332 रुपया होता है। यह कोई सवा आठ लाख रुपया प्रायः यों ही चला जाता है । इसके बदले में यदि कुछ मिलता है तो केवल थोड़े से नियमोपनियमों का बण्डल । जिस भारत के अधिकांश लोगों को एक वक्त भी पेट भर भोजन मयस्सर नहीं होता, जहाँ निरक्षरता का अखण्ड साम्राज्य है, जहाँ दस दस, बीस बीस कोस तक शफ़ाख़ानों का नाम तक नहीं, वहाँ का इतना रुपया इस लीग के ढकोसले के लिये उड़ा दिया जाय, इस पर किस साक्षर और सज्ञान भारतवासी को दुःख न होगा। इस लीग या शान्ति-सभा में सारी दुनिया के कोई 60 देश शामिल हैं। उनमें से छोटे ही छोटे अधिक हैं; बड़े बड़े धुक्कड़ तो थोड़े ही हैं । अच्छा, अब देखिये, इन धुक्कड़ों में से कौन कितने अंश ख़र्च देता है- नाम देश अंश 105 79 60 AL 60

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56 46 ग्रेट ब्रिटेन फांस इटली जापान भारत चीन कनाडा पोलैंड आस्ट्रेलिया ब्रेज़ील आयरलैंड नेदरलैंड्स गेमानिया सबिया जेकोस्लोवेकिया 35 32 27 29 16 23 22 20 29 रूस और अमेरिका के संयुक्त राज्य इसमें शामिल नहीं। जर्मनी अभी शामिल हुआ है। इससे उसका हिसाब नहीं दिया अब आप देखिये कि पहले के चार धुक्कड़ों के साथ बेचारा भारत भी बांध दिया गया है । इतने बड़े चीन को भी उससे कम ही खर्च देना पड़ता है, पर भारत को इटली और जापान के सदृश बलवान् राष्ट्रों के प्रायः बराबर-कुछ यों ही कम-रुपया फूंकना पड़ता है। जर्मनी को भी अब शायद