पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२१४

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210/महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली जाना चाहिए अथवा नहीं। इसका फैसला हाफ़िज ही के दीवान पर रक्खा गया । यह निश्चय हुआ कि इस पुस्तक का कोई पन्ना सहसा खोला जाय और वहाँ जो कुछ निकले, उसी के अनुसार काम किया जाय । निदान उन लोगों ने ऐसा ही किया । हाफिज़ के दीवान का जो भाग खोला गया, उसमें लिखा था- "हाफ़िज़ के जनाज़े (रथी) से अपना पैर पीछे मत हटाओ; क्योंकि, यद्यपि, वह पापों में डूबा हुआ है, तथापि वह विहिश्त में अवश्य दाखिल कर लिया जायगा।" अतएव वह मुसलमानों के नियमानुसार यथाविधि समाधिस्थ किया गया । हाफ़िज़ के समाधि-स्तंभ पर उसी के कहे हुए दो पद्य खुदे है और वही उसका दीवान रक्खा रहता है । उसकी समाधि के दर्शन के लिये लोग दूर-दूर आते हैं और समाधि पर वे जो सामग्री चढ़ाते है, उससे वहाँ रहने वाले दरवेशों (फ़कीरों) का अच्छी तरह जीवन-निर्वाह होता है । ये दरवेश दीवाने-हाफ़िज़ से अच्छी-अच्छी उक्तियाँ सुनाकर यात्रियो को प्रसन्न करते हैं। जिस जगह हाफ़िज़ की समाधि है, उसका नाम खाके-मुसल्ला है। हाफ़िज़ ने यद्यपि और कई छोटी-छोटी किताबें लिखी हैं, परन्तु उसका दीवान सबसे अधिक प्रसिद्ध है। वह हाफ़िज़ की कही हुई उत्तमोत्तम ग़ज़लो का संग्रह है। प्रत्येक ग़ज़ल में पांच से लेकर सोलह तक बैत है । प्रायः प्रत्येक अंतिम बैंत में हाफ़िज़ ने अपना नाम दिया है। हाफ़िज़ की ग़ज़लें वर्णक्रमानुसार रक्खी गई है। इससे यह नही जाना जाता कि कौन ग़ज़ल पहले और कौन पीछे बनी है। हाफ़िज़ की कविता के विषय में बहुत मत-भेद हैं । कोई-कोई कहते हैं कि उममें केवल पार्थिव प्रेम और लौकिक बातो का वर्णन है। परंतु कोई-कोई इसके प्रतिकूल मत देते हैं । वे कहते हैं कि हाफ़िज़ ने जो कुछ कहा है, मब अलौकिक और अार्थिव विषय में कहा है-अर्थात् उमकी कविता केवल हक्कानी है; वह केवल ईश्वर-विषयक है। यह मत सूफ़ी मंप्रदाय के मुसलमानों का है। वे हाफ़िज़ की कविता को ईश्वर पर घटाते और कहते है कि उसका यथार्थ भाव समझने की कुजी केवल उन्हीं के पास है। परंतु जिन्होंने हाफ़िज़ की कविता का बहुत कुछ विचार किया है और चिरकाल तक उमके परिशीलन में निमग्न रहे हैं, उनका कथन है कि उसमें पार्थिव विषय भी है और अपार्थिव भी। उसका सृष्टि-सौदर्य-वर्णन, उसकी मनोमोहिनी शृंगारिक उक्तियाँ और मद्य-प्राशन-विषयक उसके विलक्षण कथन आदि का विचार करके विद्वानो का मत है कि इन मव बातों को हाफ़िज़ ने ईश्वर को लक्ष्य करके नहीं कहा । इन बातो का साधुता अर्थात् फ़फ़ीरी से बहुत कम संबंध है । हाफ़िज़ की कविता स्वाभाविक है । उसकी कल्पना-शक्ति बहुत उदंड है । उमकी किसी-किमी कल्पना को मुनकर हृदय में आतंक-सा उत्पन्न हो जाता है। उसने कोई- कोई बात बहुत ही अद्भुत कही है । उसके दीवान की कई आवृत्तियां बलिन, लंदन और पेरिस में छपी हैं। उसकी कविता के अनुवाद भी विदेशी भाषाओं में हो गए हैं । सर विलियम जोंस और अध्यापक कावेल, यमरसन और डि हर बेलाट आदि ने उस पर बहुत कुछ लिखा है । बंबई के श्रीयुत के० एम० जौहरी एम० ए०, एल-एल्० बी० ने भी दीवाने-हाफ़िज़ का अनुवाद अंगरेजी में किया है । फ़ारिस में हाफ़िज़ की कविता का