॥संवर्म मुराको॥ सुल्तान अब्दुलअजीज इस समय मुराको पर योरप की शक्तियों की विशेष कृपा-दृष्टि है । मुराको का राज्य- प्रबन्ध अच्छा नहो । इस कारण मुराको के सभ्य और शिक्षित पड़ोसियों को आन्तरिक पीडा हो रही है। उनसे मुराको की राज्य-दुर्व्यवस्था देखी नहीं जाती। इससे वे उसे सुधारने की फ़िक्र में हैं। मुराको अफ़रीका के उत्तर-पश्चिम में है। उसके उत्तर में भूमध्य-सागर और पश्चिम में अटलांटिक महासागर है । उसका असली नाम मराकुश है। मुगको उसी का अपभ्रंश है । यह देश बहुत पुराना है । इस देशवालों ने योरप की शक्तियों को कई बार परास्त किया है । पर अब उनका वह दिन नहीं । अब जमाना बिलकुल ही बदल गया है । मुराको के पूर्व आलजीरिया नामक एक छोटा सा देश है । वह फ्रांस के अधिकार में है। उसे फ्रांस का उपनिवेश कहना चाहिए। पहले वहाँ मुसलमानी राज्य था। सुल्तान रूम उसके सार्वभौम शासक माने जाते थे। पर कई कारणों से, अनेक लड़ाई-झगड़ो के बाद, फ्रांस ने उसे अपने कब्जे में कर लिया। उस पर दखल करके उसने अंगरेजो से कहा कि हम यहाँ की दुर्व्यवस्था दूर करके अपना दखल उठा लेंगे । हम सिर्फ यहाँ सुधार करने आये है । पर कुछ वर्ष बाद फ्रांम ने वहाँ से हटने से इनकार कर दिया। अँगरेज़ो ने इस पर कोई एतराज नहीं किया। मिश्र को सुधारने के इरादे से उन्होने अपना ध्यान उम तरफ़ फेरा । अब फ्रांस को मुरांको की अव्यवस्था भी ग्वटकने लगी है। इस कारण उस पर भी दया दिखाने का वह आयोजन कर रहा है। उधन स्पेन भी मुराको का पड़ोसी है । वह भी इस पुण्य-कार्य में शामिल होना चाहता है । जर्मनी यद्यपि दूर है, तथापि अच्छ कामों के लिए दूर या पाम का ख़याल नहीं किया जाता । दूर रहकर भी जर्मन-नरेश मुगको की सीमा का दर्शन कर आये हैं और अपने शुभ चिन्तन से मुराको के सुल्लान को ऋणी बना आये है। इन्हीं कारणों से योरप की शक्तियों में मुराको के सम्बन्ध मे विषम विवाद हो रहा है । जिबराल्टर के पास एक जगह आलजिसीरम है। वह स्पेन के अधिकार में है। वही मब शक्तियो के प्रतिनिधियो ने जमा होकर मुराको सम्बन्धी समस्याओं के की ठानी। मव जमा हुए। महीनों मीमांसा होती रही। जर्मनी ने बड़े बड़े दांव-पेच खेले । इमसे मीमामा का मिदान्त स्थिर करने मे बहुत विलम्ब हुआ। अब सुनते हैं, मत्र बानो का निश्चय हो गया है और उम निश्चय को सुनने के लिए सभा के कुछ मभ्य मुराको के सुल्तान अब्दुलअजीज़ के पास गये हैं। पाठक कहेंगे, मुराको के सुल्तान अपने देश का सुधार करें या न करें, औरों की दस्तंदाजी करने का क्या अधिकार ? पर योरप की गजनीति ऐसी नहीं। उसके अनुमार इस तरह दम्नंदा नी करना ही न्याय है। वहाँ के नीतिनिपुण कहते हैं कि यदि आपके हल करने
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