पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२५

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प्राचीन मिश्र में हिन्दुओं की आबादी /21 अपना व्यवस्थापक माना है। मिश्र वाले कहते हैं कि मनु को हुए कोई 8684 वर्ष बीते । रोम और ग्रीस वाले भी अपने एक देवता को इतने ही साल का पुराना मानते हैं । डियोडोरस और जस्टिन आदि इतिहासकारों का कथन है कि यह देवता भारतवर्ष का है। भारत और मिश्र के प्राचीन सम्बन्ध के अनेक प्रमाण पाये जाते हैं। मिश्र की एक प्राचीन जाति का नाम 'दानव' है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि 'दानव' शब्द पुराणों में सैकड़ों जगह आया है। सत्ताईम सौ वर्ष पुराने काल्डिया के शिलालेखो से मालूम होता है कि भारत का व्यापार फारम की खाड़ी में खूब होता है। जिनाफ़न अपने ग्रन्थ में लिखता है कि ईसा के 600 वर्ष पहले भारत का एलची सीज़र बादशाह के दरबार में गया था। उसके बाद भारत का व्यापार केवल मिश्र ही में नही किन्तु कार्थेज और रोम तक फैल गया। बड़े बड़े विद्वानों का कथन है कि भारतवर्ष ने साढ़े तीन हजार वर्ष पहले ज्योतिष में खूब उन्नति कर ली थी। मिश्र ने सैकड़ो वर्ष पीछे भारतवासियो ही के द्वारा ज्योतिष में ज्ञान प्राप्त किया। इस बात को डूपस नामक एक फ्रेंच विद्वान ने बड़ी अच्छी तरह सिद्ध किया है। मिश्र की इमारतें और गुफा मन्दिर सब हिन्दोस्तानी ढंग के हैं । यही क्यों, एक साहेब की तो यह गय है कि आयरलैंड के बुर्ज भी हिन्दोस्तानी काटछाँट के हैं। मिश्र की कोई साढ़े तीन हजार वर्ष पुरानी कबरों में नील, इमली की लकड़ी और ऐसी ही अन्य कई चीजें मिली हैं जो केवल भारतवर्ष में पैदा होती हैं। यूफ्रेटिम नदी के किनारे मघेर नामक स्थान पर एक क़ब्र में सागौन की लकड़ी पाई गई है। यह 5000 वर्ष की पुरानी साबित हुई है । स्मरण रहे कि सागौन के पेड़ हिन्दोस्तान के सिवा दुनिया में और कही नहीं होते । इतिहास का यह मत है कि प्राचीन समय में मिश्र, रोम, ग्रीस और एशिया माइनर में ऐसी बहुत सी औषधियाँ और बनस्पतियाँ काम में आती थीं जो केवल हिन्दोस्तान में उत्पन्न होती हैं । प्राचीन भारत के सिक्कों के नाम भी मिश्र आदि कई पश्चिमी देशों में प्रचलित थे। जैसे माशा, सिकल (सिक्का), दीनारस (दीनार) आदि वहाँ के तौल, नाप के बाट आदि भी हिन्दोस्तान ही के समान थे । सबसे बढ़कर विचित्र बात यह है कि यहाँ का रुपया इसी नाप, तौल और रूप में प्राचीन मेक्सिको में प्रचलित था। प्राचीन मिश्र वाले हिन्दोस्तानियों ही के वंशज थे। मार्टन नाम के एक साहेब ने अपने ग्रन्थ में एक जगह लिखा है कि मसाला लगे हुए मुर्दो की सौ में से अस्सी खोपड़ियाँ आर्य जाति की थीं। भारत के समान मिश्र वाले भी कई वर्षों में विभक्त थे। एपीनस और झीनी आदि इतिहास-लेखकों का कथन है कि लौकी, नारंगी, इंजीर, नाशपाती, चावल और लोहा आदि कई चीजें भारत से मिश्र आदि देशों में गई। मिश्र की बहुत सी जगहों के नाम-जैसे नील, शिव, एलीफेंटा और मेरु आदि