पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२५८

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254 / महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली

शाल भी फ़ारस में बनते हैं। यद्यपि काश्मीर के बने हुए शालों की वे बराबरी नहीं कर सकते, तथापि वे भी असाधारण ही होते फ़ारस में छोटे बड़े सब दस सूबे हैं। उनमें से अजरबैजान, खुरासान, सीस्तान, मज़न्दरान, जंजान और अस्तराबाद मुख्य हैं । फ़ारस में तुर्क और फ़ारसी ही अधिक बसते हैं; परन्तु अरब और यहूदी भी कहीं कहीं हैं । किरमान में थोड़े से हिन्दू भी हैं। वहाँ एक जगह यज्द है। उममें फ़ारस के प्राचीन अग्निपूजक भी हैं। गत जनवरी में फ़ारस के शाह मुजफ्फरुद्दीन की मृत्यु हो गई । आपका खिताब था शाहंशाह । फ़ारस के सभी शाह शाहंशाह कहलाते हैं । आपका जन्म 25 मार्च 1853 हुआ था। पिता शाह नसीरुद्दीन के मारे जाने पर आपको, 1 मई 1896 को राजामन मिला था। आपका वंश-वृक्ष बहुत बड़ा है। फ़ारस के शाह अपनी उत्पत्ति नूह के बेटे जाफ़ेट से बतलाते हैं । इस राज्य की नीव साइरस नाम के प्रतापी पुरुष ने डाली। उसे दादा और जरकश ने अपनी तलवार के ज़ोर से दृढ़ किया। फ़ारस की प्रजा अपने शाह को ईश्वर की छाया, स्वर्ग की सीढी, और विज्ञान का उत्ताल तरंगमय समुद्र समझती है। शाह अपनी प्रजा के धन और प्राण दोनों के प्रभु होते हैं । रत्नादि में तो शाह की वराबरी योरप और एशिया का कोई बादशाह, शाहंशाह या राजा नही कर सकता। शाह की निज की सम्पत्ति बहुत करके रत्नमय ही है। उसके 'दरियाय-नूर' नामक हीरे का वजन 186 कैरट (4 तोला 1 माशा है); और 'ताजे-माह' का 146 कैरट (3 तोला 2 मागा 4 रत्ती) है । शाह के 12 लड़कियाँ और 6 लड़के हैं। यह संख्या 1902 तक की है। आपके युवराज मुहम्मदअली मिर्जा अब आपकी गद्दी पर बिराजे हैं । इनका जन्म 1872 ईसवी का है । सुनते है, शाह के बहनें भी उतनी ही हैं जितनी कि उनके लडकियाँ हैं । और भाई भी उतने ही जितने उनके लड़के हैं। यदि यह सच है तो बात बड़ी अजीब मालूम होती है। मृत शाह के पिता शाह नसीरुद्दीन का शरीर खूब लम्बा चौड़ा था। उनके चेहरे पर रोब, वीरता और पुरुषार्थ झलकता था। आपको शिकार का बड़ा शौक था। राजधानी छोड़कर आप बहुधा पहाड़ों पर कुत्ते और शिकारी चिड़ियाँ लिये हुए घूमा करते थे । जब आपको राज्य मिला तब आप केवल तुर्की भाषा जानते थे। परन्तु थोड़े ही दिनों में आपने फ़ारसी लिखना पढ़ना बखूबी मीख लिया, और फ़गसीसी और अग्बी मे भी थोड़ा बहुत अभ्यास कर लिया । आपने दो बार इंगलड की सैर की। एक बार 1873 मे, दूमरी बार 1889 में। शाह प्रजाप्रिय थे; वीर थे; गज्य-प्रबन्ध में पूरी योग्यता रखते थे; परन्तु आपका मिजाज कुछ लड़को का सा था। विलायत में आपने एक दफ़े बहुत मी पैरगाड़ियाँ खरीदीं। उनमें एक एक गाड़ी आपने अपने साथ आये हुए एक एक अमीर को दी और कहा इस पर चढ़िये । उन लोगो को चढ़ने का बिलकुल अभ्याम न था । परन्तु शाह की आज्ञा कैसे उल्लंघन की जा सकती थी? वे चढ़े कि धड़ाम धड़ाम नीचे आ रहे ! विलायत से रबर की एक नाव भी आप तेहरान लाये। वहाँ उसके नीचे की डाट निकालकर आपने कई अमीरों को उस पर सवार कराया और शाही बाग़ के तालाब में उसे चलाने का हुक्म दिया। जरा देर में वह पानी के भीतर हो