पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२६०

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256 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली बजे खाना खाने के बाद, आप कुछ देर आराम करते थे। अनन्तर आप थोड़ी सी चाय पी कर तार का यन्त्र चलाते थे । आपने तार का काम सीखा था और उससे खबर भेजने का आपको बड़ा शौक़ था। शाह को फ़ोटोग्राफी में भी खूब अभ्यास था । आपके लिये हुए अनेक अच्छे अच्छे फ़ोटो है । हर पोशाक और हर सूरत में आपने अपने भी फ़ोटो उतारे थे। यहां तक कि लेटे लेटे भी आपकी तसवीर उतारी गई थी। शाह मुज़फ़रुद्दीन भी दिल्लगी-पसन्द नरेश थे। आपके ज़ेर माये कितने ही मसखरे मजे उड़ाते रहे हैं। अनेक प्रकार के किस्से कहानियाँ कहकर और अजीब अजीब तरह की बातें सुनाकर वे शाह को हँसाते थे। शाह मुजफ्फ़रुद्दीन ने गद्दी पर बैठते ही रोटो और मास पकाकर उठा दिया। इससे उनका बडा नाम हुआ । प्रजा प्रसन्न हो गई। शाह को रुपये की बड़ी ज़रूरत थी। उन्होंने इंगलैंड से क़र्ज़ मांगा। इगलैड वालों ने तो कर्ज देना मजूर किया; पर शर्ते बेढब करनी चाहो । इससे लाचार होकर शाह ने रूस से 3।। करोड रुपया क़र्ज लिया । यह बात अंगरेजो को अच्छी नही लगी । इस ऋण के कारण रूस की प्रभुता फ़ारस में बढ़ गई । रूस और फारस के दरमियान व्यापार-विषयक एक मन्धिपत्र भी लिखा गया। इसका अमर जो फ़ारस पर हुआ वह यदि जाता नही रहा, तो बढ़ने का भी नही, क्योकि इंगलैंड और फारम के दरभियान अब व्यापार-विषयक एक दस्तावेज लिखी गई है। शाह मुजफ्फरुद्दीन ने, 1900 में, रूस और फ्रांस की सैर की और 1902 में इगलैंड की । वहां उन्होंने जो राजनैतिक अनुभव प्राप्त किया उसका फल फ़ारस का नवजात पारलियामेंट है । फ़ारस के शाह अपार सम्पत्ति के स्वामी है। उनके शाही महलो में जेवर और जवाहिरात का अन्न नही । देहली का तख्त-ताऊस आप ही की सम्पदा है । तेहरान में एक ख़ास महल है, उसे सम्पत्ति-सागर कहना चाहिए। श्रीमती बिशप ने फारम पर एक किताब लिबी है। उममें वे कहती है कि इस महल का वह दीवानखाना जिममें शाह के रत्नादि रक्खे है, दुनिया भर के सबसे सुन्दर स्थानों में से एक स्थान है । उसके बीच में एक मुवर्ण-वचित मेज है। सोने ही के काम की कुरसियाँ भी कमरे में चारो ओर रक्खी हैं । बहुमूल्य मेजो के ऊपर और काँच की अलमारियों के भीतर, शाह के अनेक मुकुट और असंख्य रत्न जमा है। हीरे, मोती, लाल, नीलम, पुखराज, सैकड़ो प्रकार के सोने के पात्र, रत्नो से खचित कटार और तलवार, लाल और जमुर्रद जड़े हुए मुकुट, हीरे लगी हुई ढाले, भाँति भांति के रत्नों से लबालब भरी हुई रक़ाबियाँ, देख कर देखने वाला हैरत में आ जाता है । उनकी शोभा, उनकी बहुमूल्यता, उनकी अनन्तता अवर्णनीय है। उस सम्पत्ति को देखना एक सपना मा है। परन्तु उसे जो देखता है वह भूलता नही। 12 इंच चौड़ी और तीन फुट ऊँची कितनी ही अलमारियां ऐसी हैं जिनमें सिवा हीरे, लाल, पुखराज और नीलम के कोई चीज नहीं । उनसे जो रंग-बिरंगी किरणें निकलती है उनकी शोभा देखते ही बनती है; वह वर्णन का विषय नही। किसी किसी जगह पर ये रत्न यो ही ढेर हैं; कायदे से रक्खे भी नहीं गये । वहां पर पृथ्वी का एक गोला (Globe) है । वह बहुत ही अद्भुत वस्तु है। उसका व्यास 20 इंच है। उसकी म. दि.10.4 -