पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२६६

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262 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली इस त्रिमूर्ति को वेदज्ञ-शिरोमणि कहना चाहिए। इसी से आचार्य मुग्धानल वेद-विद्या मे इतने निष्णात हैं। इसके सिवा काव्य, कोश, व्याकरण आदि विषयों में भी आपकी अच्छी गति है; पर विशेष करके आप वेदों ही के अध्ययन और वेदों ही के तत्त्वार्थ-प्रकाशन में लीन रहते हैं । आपने एक संस्कृत-कोश भी प्रकाशित किया है; एक संस्कृत-व्याकरण भी लिखा है । कितने संस्कृत-ग्रन्थो का आपने सम्पादन किया है, इसकी तो गिनती ही नहीं। हम उनके नाम देने में असमर्थ है । हमें सबके नाम ही नहीं मालूम, दें कैसे ! डाक्टर मेकडॉनल ने एक बहुत महत्त्व-पूर्ण पुस्तक लिबी है। उसमें आपने वैदिक देवताओं का वर्णन बड़ी ही योग्यता से किया है । वेदो मे जो कितनी ही कथायें और अन्योक्तियाँ हैं उन सबका डाक्टर साहब ने उसमें विचार किया है। उसके लिखने में आपने बड़ा पाण्डित्य दिखाया है; बड़ा परिश्रम किया है। पण्डित शिवशकर शर्मा जी ने त्रिदेव-निर्णय' नाम की एक पुस्तक लिखी है। उसकी समालोचना सरस्वती में निकल चुकी है । पण्डितजी को चाहिए कि आचार्य मुग्धानल की यह पुस्तक अवश्य पढ़े। आचार्य ने एक और भी प्रगाढ़ पाण्डित्य-पूर्ण ग्रन्थ लिखा है । वह हप रहा है । अभी तक प्रकाशित नही हुआ। यह ग्रन्थ वैदिक व्याकरण है। कई वर्षों के मतत परिश्रम से आप इसे लिख पाये हैं । प्रकाशित होने पर, सुनते हैं, यह ग्रन्थ अपने ढंग का एक ही होगा। आपका 'लौकिक व्याकरण' प्रकाशित हुए वहुत दिा हुए; अब 'वैदिक व्याकरण' भी प्रकाशित होने जाता है। दोनों व्याकरणों के आप उत्कृष्ट ज्ञाता मालूम होते है। पर आचार्य मुग्धानल का, संसार को चकित करनेवाला, कार्य अभी होने को है। जिन दो ग्रन्थों का नाम ऊपर हमने दिया है उन्हें इस ‘महतो महीयान्' कार्य की भूमिका मात्र समझिए । आप ऋग्वेद का एक सर्वसुन्दर अनुवाद ॲगरजी भाषा में लिव- कर प्रकाशित करना चाहते हैं । यह अनुवाद आपका 'Complete' (पूर्ण) होगा और 'Scientific' (शास्त्रसम्मत अथवा विज्ञानसिद्ध) भी होगा। इसके लिए आप अभी से तैयारियां कर रहे हैं। शीघ्र ही आप उसका आरम्भ करने वाले है । विदेशी विद्वानों की राय है कि ऐमा अनुवाद कही अब तक प्रकाशित नहीं हुआ । 'Sucred Books of the Eest' (पौर्वात्य पवित्र पुस्तक-माला) मे जो अनुवाद निकला है वह पूरे का दशांशमात्र आचार्य महाशय की महत्त्वाकांक्षा यही तक न ममझिए। आप ऋग्वेद का अनुवाद करके एक और बृहद् ग्रन्थ लिखने का इरादा रखते है। आप जो इन देश में विचरने आये थे उसके कई मतलब थे। एक मतलब आपका था-एक बहुत बड़े कोश के लिए सामग्री एकत्र करना । इसमें भारतवर्ष की पौगणिक और धाम्पिक बातों का भाण्डार रहेगा। प्रत्येक बात का प्रत्येक कथा का-प्रत्येक धाम्मिक विचार का- ऐतिहामिक रीति से विचार किया जायगा । इसमे जगह-जगह पर चित्र भी रहेंगे । नाग कोण मचित्र निकलेगा। आक्टोबर 1907 में आचार्य ने भारतभूमि में पदार्पण किया था। आग कोई 6 महीने इस देश में घूमे। आपने इस देश के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध प्राचीन स्थानों में भ्रमण किया । हिन्दू धर्म क्या चीज़ है, इसको ध्यान से देखा। आपकी इच्छा हस्तलिखित