पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३०५

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मुक्ति-फौज के अधिष्ठाता जनरल बूथ | 301 लौट आये। वहां उन्होंने एक धर्म-सभा स्थापित की। इस सभा का कई बार नामकरण- संस्कार हुआ। अन्तिम नाम के पहले उसका नाम था 'क्रिश्चियन मिशन' (Christian Mission) मजदूर और अन्य निम्न श्रेणी के लोग ही उसके मदस्य थे । बूथ उन्ही लोगों की सहायता से निम्न श्रेणी के लोगों में धर्मोपदेश देते थे। 1878 में इस सभा में अपना अन्तिम, अर्थात् वर्तमान रूप धारण किया। उसका नाम रक्खा गया-' -'मुक्ति फ़ौज' (Salvation Army) और उसके नेता बने 'जनरल' बूथ । पहले लोगों ने मुक्ति-फ़ौज का बड़ा ही प्रबल विरोध किया। इस फ़ौज के 'सैनिको' का नया ढंग और नया रंग देखकर लोग भयभीत से हो गये। जहाँ ये 'सैनिक' गा गा कर धर्मोपदेश करना चाहते वहाँ लोग इतना ऊधम मचाते और इन्हें इतना तंग करते कि लाचार होकर इन लोगों को वहाँ से खिसक जाना पड़ता । लड़के इन्हे राह चलते चिढ़ाते, लोग इनकी पोशाक की हँसी उड़ाते, और गली-गली, घर-घर में इनके से बाजे बजा बजा और गा गा कर इनके उपदेश देने के ढंग का मखौल उड़ाते । कोई इन्हें पागल कहता, कोई मूर्ख ! कोई इन्हे ढोंगी बतलाता, कोई ठग ! केवल इतना ही नही, लोगों ने भी एक फ़ौज तैयार की जिसका नाम रक्खा-'Skcleton Army' (ठठरी फ़ौज) इसका उद्देश ‘मुक्ति-फौज' को तोड़ देना था। बहुत दिनों तक ऐसी ही अवस्था रही। अन्त में लोग इनकी दृढ़ता और सुजनता के कायल हो गये। बडे बड़े विज्ञानवेत्ताओं और राजपुरुषों तक ने इनके कामों को सराहा। धर्मसंस्थाओं के नेता भी आगे बढ़े। उन्होंने 'मुक्ति-फ़ौज' की प्रशंसा करना आरम्भ कर दिया। स्वर्गीय सम्राट् एडवर्ड, महारानी अलेगजेन्ड्रा, जापान के भूतपूर्व सम्राट, संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रेसीडेन्ट आदि बड़े-बड़े पुरुषों ने जनरल बूथ और उनके कामों की जी खोल कर प्रशंसा की। मुक्ति-फ़ौज का काम इंगलैंड ही में परिमित न रहा। वह शीघ्र ही संसार- व्यापी हो गया। 1886 में, संयुक्त राज्य अमेरिका में, और 1881 में आस्ट्रेलिया में, उसकी शाखाये स्थापित हो गई। थोड़े ही दिनों में योरप के अन्य राज्यों में भी मुक्ति- फ़ौज के अड्डे बन गये। 1911 के सितम्बर मास तक मुक्ति-फ़ौज का प्रचार संसार के भिन्न भिन्न 59 देशो में हो गया और उसकी पुस्तकें लगभग 34 भाषाओं में छप गई। इस समय उसकी शाखायें 8582 स्थानो में हैं, परन्तु उसका केन्द्र लन्दन ही में है। केवल ब्रिटिश द्वीपो ही में उसके लगभग सवा लाख 'सैनिक' और दो करोड़ की सम्पत्ति है। उसकी ओर से 'All The World' नाम का एक मासिक पत्र भी निकलता है, जिसमें सब शाखाओं का हाल प्रकाशित होता रहता है । हमारे देश में भी मुक्ति-फ़ौज के कितने ही अड्डे हैं । यहाँ इसका काम बड़ी धूम से चल रहा है। यहाँ इस फ़ौज के ढाई हजार तो केवल अफ़सर ही हैं। अन्य काम करने वालों की संख्या लाखों तक पहुंची है । हिन्दी, उर्दू, मराठी, गुजराती, बंगला, गुरमुखी, तामिल, तेलगू आदि कितनी ही भारतीय भाषाओं में उसकी पुस्तकें छप चुकी हैं। फ़ौज की ओर से कितनी ही प्रारम्भिक पाठशालायें खुल चुकी हैं, जिनमें दस हजार से अधिक बच्चे शिक्षा पाते हैं। गांवों में छोटी छोटी बैंकें खोली गई हैं; और, इस प्रकार