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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३१

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बाली द्वीप में हिन्दुओं का राज्य / 27 असती का सिर धड़ से जुदा कर दिया और यह कहकर वहां से चल दिया कि हमारे राजा ने साहेब को ऐसा ही पुरस्कार देने के लिये कहा था । बाली और लम्बक के निवासियों में जितने हिन्दू हैं वे प्रायः सभी शैव है । केवल दो चार बौद्ध हैं। शैव लोग चतुर्वर्ण में हैं । वहाँ वाले उन्हें अपनी भाषा में ब्राह्मण, क्षत्रिय, विषिय और शूद्र कहते हैं । यह कहने की आवश्यकता नहीं कि ये शब्द ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के परिवर्तित उच्चारण मात्र हैं। बाली निवासी चतुर्वर्ण को 'चतुर्जन्म' कहते हैं । उच्च जाति के लोग नीची जाति की कन्या के साथ विवाह कर सकते हैं, परन्तु उन्हें अपनी कन्या नही दे सकते । यदि ऐसा सम्बन्ध कही हो जाता है तो उससे जो सन्तान होती है वह वर्णसंकर कहलाती है । असवर्ण-विवाह में कोई बाधा नही दे सकता । तथापि ऐमा सम्बन्ध धर्मानुमोदित नही समझा जाता। केवल सवर्ण विवाह ही को वे लोग धर्मानुकूल समझते हैं । इस हिन्दू-राज्य मे जितने नगर और ग्राम है उनमें केवल चतुर्वर्ण ही रह सकते हैं । कुम्हार, धोबी, गँगरेज, चमार और मेहत र आदि नगरों और ग्रानों के भीतर नहीं रह सकते, उनके लिये गाँव के बाहर स्थान नियुक्त होता है । वे लोग वहीं रहते है इन सब जातियो को बाली के चतुर्वर्ण चाण्डाल कहते है और उन्हे छूते तक नही। इन चतुर्वर्ण हिन्दुओं में केवल वैश्य और शूद्र ही नाना प्रकार के देवताओ और देवियों की मूर्ति नहीं पूजते । यहाँ ब्राह्मणों का प्रताप अब भी अक्षुण्ण है और सर्वसाधारण उन्हें भक्ति और श्रद्धा की दृष्टि से देखते है । क्षत्रिय लोग सेना और विचार-विभाग में काम करते है। ब्राह्मण लोग शिक्षा धारण करते है, पर यज्ञोपवीत नही पहनते । मन्त्रोच्चारण में ओंकार का व्यवहार प्रचलित है। परन्तु वहाँ वाले उसे 'ओग शिव चतुर्वज' यह मन्त्र पढ़ते हैं। ये शब्द 'ओ3म् शिव चतुर्भुव' का केवल बिगड़ा हुआ रूप बाली-द्वीप के ब्राह्मणेतर हिन्दू खाद्याखाद्य का कुछ भी विचार नहीं करते। वे गो-मांस तक खाते है। अन्य पशु-पक्षियो की तो बात ही क्या है । मुर्गी और सुअर का मांस तो वहाँ वालो का अत्यन्त प्रिय खाद्य है। यह बात बाली के केवल क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों ही की है। वहाँ के ब्राह्मण निरामिषहारी है । उनमें से कोई कोई ऐसे भी हैं जो केवल फल फूल खाकर ही अपना जीवन निर्वाह करते है । अन्य खाद्य पदार्थ हाथ से भी नही छूते । द्वीप में भिखारी ढूंढ़ने पर भी नही मिलते । यदि कोई मनुष्य कोई साधारण पाप-कर्म करता है तो उसे प्रायश्चित्त करना पड़ता है। परन्तु प्रायश्चित्त करने वाले को शारीरिक दण्ड नहीं भोगना पड़ता । गोबर या गोमूत्र भी नहीं खाना पड़ता । किन्तु जब वह अपना प्रियतम खाद्य त्याग करता है तब किसी गुफा में जाकर अज्ञात वास करता है और ब्रह्मचर्य व्रत धारण करता है। तभी उसका प्रायश्चित्त होता है । बाली और लम्बक में सतीदाह की प्रथा अब भी वर्तमान है। इसे वहाँ वाले 'सत्य' कहते हैं । यह प्रथा क्षत्रियों और वैश्यों में विशेष रूप से प्रचलित है। यहां के हिन्दू बहुविवाह कर सकते । इसलिये यह अकसर देखा जाता है कि एक मनुष्य के मरने पर विधवायें चिता