पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३२

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28 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली - पर जलती हैं। मृत मनुष्य का सत्कार करने की प्रणाली कुछ विचित्र सी है। जब कोई मनुष्य मरता है तब उसी समय वह जलाया नहीं जाता, किन्तु एक मास के बाद उसकी अन्त्येष्टि क्रिया की जाती है। साधारण आदमियों की अन्त्येष्टि क्रिया जिस तरह की जाती है उस तरह राजा की नहीं की खाती । रानियों की सहमरण-रीति भी कुछ भिन्न है। राजा की अन्त्येष्टि क्रिया समाप्त हो जाने पर उसकी चिताभस्म रख ली जाती है । उसके पाँचवें दिन सब रानियाँ एक निद्दिष्ट स्थान पर इकट्ठी होती हैं । उस समय पटरानी एक गोला फेंकती हैं । यह गोला जहाँ गिरता है उसी जगह रानियाँ अपनी छातियों में छुरियाँ भोंक लेती हैं । इस तरह उनकी सहमरण क्रिया समाप्त हो जाती है। बाली द्वीप में शालवाहन का शकान्द अब भी व्यवहृत होता है। वहाँ वाले उसे 'शकवर्षचन्द्र' कहते है। यहाँ के शैव लोगों के पास बहुत से हस्तलिखित ग्रन्थ पाये जाते हैं। उनमें से प्रधान ग्रन्थो के नाम उन लोगों की बोली में ये हैं-आगम, आदिगम, सारसमुच्चयागम, देवागम, मैश्वरलत्व, श्लोकान्तरागम, गम्यागम इत्यादि । वहां के अनेक शास्त्र ग्रन्थ विलुप्त हो गये है। बाली और लम्बक द्वीप के हिन्दू पहले जावा में रहते थे । मुसलमानो के भय से वे वहाँ से बहुबाहु नामक राजा के साथ बाली द्वीप में चले आये । ये लोग जावा मे कब और किस सिलसिले से आये थे, यह बात कोई नहीं जानता। हाँ, इतना पता अवश्य लगता है कि कलिङ्ग देश के शैवों ही ने जावा में हिन्दू-राज्य स्थापित किया था। भाषा, धर्म, आचार-व्यवहार आदि सभी बातें देश और काल के भेद से विभिन्न हो जाती हैं, परन्तु विभिन्न हो जाने पर भी उनमें कुछ कुछ सादृश्य बना रहता है। बाली द्वीप की भाषा, धर्म, आचार और व्यवहार में भी उसका परिचय पाया जाता है। इस द्वीप तथा आस पास के अन्यान्य द्वीपों की भाषा के साथ संस्कृत का बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस बात को इन द्वीपों में जाने वाले सभी लोगों ने स्वीकार किया है। भारत महासागर के इन दो हिन्दू-द्वीपों का इतिहास इस समय तिमिराच्छन्न है। इन द्वीपों से हिन्दू लोगों ने कब और किस प्रकार उपनिवेश-स्थापन किया उसका लिखित इतिहास न तो बाली द्वीप ही में मिलता है और न अन्य ही किसी देश में । यदि यह मान लिया जाय कि शैव लोगों ने यहाँ उपनिवेश स्थापित किया तो यह भी मानना पड़ेगा कि यह घटना बौद्ध धर्म के आविर्भाव होने के पीछे की है। बाली द्वीप में शकाब्द का प्रचलन इस मत को पुष्ट करना है। परन्तु उपनिवेश-स्थापन करने के पहले भी हिन्दू लोग इन द्वीपों में प्राचीन काल से आते थे। इस बात के बहुत प्रमाण पाये जाते हैं । मृत्यु के बाद एक मास तक शव रखना बहुत पुरानी पद्धति है । बौद्ध धर्म के आविर्भाव होने के पहिले भी भारतवर्ष में इसका चलन था । भारतवर्ष की भाषा (संस्कृत) बाली आदि द्वीपों में वहां की असभ्य भाषाओं के मेल से जिस प्रकार बदल गई है उसी प्रकार के आचार-व्यवहार भी वहां परिवर्तित हो गये हैं : जब स्थान, काल और पात्र के भेद से भारतवर्ष ही के विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-