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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३११

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अध्यापक एडवर्ड हेनरी पामर /307 दवात अंगुश्ते हैरत दर दहानस्त, पये तहरीर गर मन खामा गीरम । हमीं कि रतास मीपेचद जे गुस्मः गरश बहरे नविश्तन् नामा गीरम । कलमदां मीनुमायद मीना रा चाक कि मन दर ज़ेवे नादाँ जाय गीरम । जनम गर दस्त दर आग़ोशे मज़मूं जवानी के नुमायद अगले पीरम ? फ़क़ीराना सवाले फ़िक्र दारम, कि पेशे फिक्र कमतर अज़ फ़क़ीरम । चे मीकाबी जिगर बेहूदा पामर हमी बाशद निदाहाये मरीग्म । पये तहरीर हालाते जरूरी मगर वक्ते जरूरत ना गुजीग्म । मनो इनशाओ इमलायम हमा पूच पजीर ई कौले मन ऐ दिल पजीरम । मनेह बर दोशे मन वारे दबीरी हक़ीरम मन हक़ीरम मन हक़ीरम । अपने ऊपर ढालकर पामर ने निकोल साहब की फ़ारमी की ऐसी खबर ली कि स्वयं निकोल साहब को पामर की कविता और फ़ारसी की योग्यता की प्रशंसा करनी पड़ी । पामर के फ़ारसी-गद्य के नमूने के तौर पर उस पत्र का कुछ भाग उद्धृत किया जाता है जिसे उन्होंने अपने मित्र और शिक्षक सैयद अब्दुल्ला को लिखा था- बिरादरे आली जनाब, फैज़माब, वाला खिताब, जो उल् मज्द वल उला सैयद अब्दुल्ला साहब दाम इनायतहू । अल्लाह अल्लाह । ईचे तहरीर हैरत अफ़ज़ा अस्त कि अज किल्के मरवारीद-सिल्के औं वाला-हमम सरजद । सबबे अदमे तहरीर मुहब्बत नामजात न ग़फ़लत न तसाहुल बल्कि हक़ीक़त हाल ई अस्त कि दर तसनीफ़ किताबे सैरो सैयाहीए अरब व तरतीबे नक़शा जात हर दियार व अम्सार व हवाली बहरो बर्र कि गुजरम वर आँहा उफनादा व हालाते तवारीने पास्तानी बक़ाये व कैफ़ियाते औक़ाते सफ़र व हजर वद व दीगर सवानह अज़ हुक्मे हाकिमाने मदरसा बराय : ददाश्त वर सफहात लैलो निहार हमातन मशगूलअम। व शर्त ई अस्त कि दर हमी साल अज हुलयाय तबा मुकम्मल शवद । ज़्यादा अज़ दो हजार अवराक़ तक़तीय कार तमाम शुदन्द । अलावा तसनीफ़ तसहीहे अवराके मसवदाते मतबा दरों शबरा बरोज व रोजरा बशव वसर मीबरम । कमाल इहतियात जरूर अस्त कि गुप्ताअन्द "-hindiantr" आहुगीराने बेकार दिल-आजार कि नुक्ता-