पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३१२

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308 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली चीनी ज्वाहन्द कर्द अज़ अव्वल इस्लाहे कार बायद कर्द । पस चिगूना अज तरफ आँ बिरादर कि उस्ताद व मुहसिन व मुरब्बी ईं हेच मेयुर्ज बर दिले मोहब्बत मंजिलम गुबारे कुदूरत व मलाल जो गीरद-बजुज लुत्फो इनायत चे करदह आयद कि मन खदा न ख्वास्ता नाख श शवम । बहर कैफ़ लायक़ अफू व उजरम न काबिले जजूर चरा कि दिलम अज मुहब्बते शुमा मदाम मामूर अस्त। राह अगर नजदीक व गर दूरस्त । दिल जुदा दीदा जुदा सूय तू परवाज़ कुनद । गरचे मन दर क़फ़सम बाल व परम बिसयार अस्त । पामर साहब फ़ारसी-गद्य और पद्य तो अच्छा लिखते ही थे-उर्दू-गद्य और पद्य लिखने में भी वे सिद्ध-हस्त थे। नीचे उनकी एक उर्दू कविता उद्धृत की जाती है, जिसे उन्होंने सैयद अब्दुल्ला की एक कविता देखकर उसी के वजन पर लिखा था । सैयद अब्दुल्ला ने इस कविता के विषय में कहा था कि इसमें संशोधन की कुछ भी आवश्यकता नहीं और योरप भर में कोई आदमी ऐसी कविता नहीं लिख सकता- चूंकि है हमदे खुदा ताजे सरे नुतको बयां चत्र-नअते ईसये गरदं नशी हो सायबाँ, क्या अजब बरसाये अख़तर के जवाहिर आसमाँ कहकशां के जौहरी बाजार से हों शादमाँ, मोरछल ताऊस लाये और कलगी खुद हुमा दे ज़रे गुल की बनी पोशाक पुर जर बोस्ताँ बोतलें गुंचे बनें गुलहाय गुलशन हों गिलाम और गुलाबी होय बस रगे बहारे गुलमिताँ । शाहिदे नाज़े चमन रक्कामा होकर आयें फिर दे इन्हें अक़दे सुरैया का वह झुमका आममाँ । सब जवानाने चमन गाये बजाये पेश गुल नग़मये बुलबुल को सुन चक्कर मे आये बाग़वाँ । यों सदा निकले बहम मिलकर बजाये साज जब धूम दर पर धूम दर पर, दर पे तेरे शादियाँ । कहकशां तो हो सड़क जति तावां हों नुजूम रोशनी में उसपै सैयारों की दौड़े बग्घियां । आसमां बन जाय पुल ख रणद व मह हों लालटेन और बजाये सिलसिला तारे शुआयी हों अयाँ । चर्ख बन जाये अमारी वर्के ताबा झूल हो, फ़ील हो अब सियः और राद होवे फ़ीलबौ । धुन में मस्ती की हवा पर जब चले वह झूम झूम मौजे दरिया उसकी वेड़ी हो क़दम कोहे कला।