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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३१३

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अध्यापक एडवर्ड हेनरी पामर / 309 हम-रकाबे अबलके दौरां हो यह सारा जुलूस और गवारी में मेरे ममदूह की होवे रवाँ । कौन है वह साहबे इक़बाल व इज्जत नार्थकोर्ट रायट आनरबुल सर इस्टफर्ड ममदूहे ज़माँ । पामर का उर्दू मे भी अच्छा दखल था । जिस भाव को चाहते उसे बड़ी खूबी से अदा कर देते । विलायत हुसैन नाम के एक मौलवी ने उनके ऊपर यह दोषारोपण किया कि उन्होंने दीवाने-ख मरो से कुछ कविताये चुरा ली है । पामर ने इस विषय में अपनी सफ़ाई दी और अपने को निर्दोष सिद्ध किया । इसके बाद उन्होने उक्त मौलवी पर एक व्यंग्यपूर्ण कविता रचकर उसकी खूब ख़बर ली। इस कविता का एक खण्ड नीचे उद्धृत किया जाता है । देखिए- हाँ गाजिये मतला तू लगा नेगे दो दस्ती शण पारा कर इस मौलवी का पंकरे हस्ती । हाँ मानिये दौरों है दमे रिन्दी ओ मस्ती हुशयार कि दम में न बलन्दी है न पस्ती । न त म है न शीशा है न मागर है न बादा हर बार फ़िके नशये जुरअत है ज़ियादा । आ मामने यह गो है यह चौगों है यह मैदाँ मैं इल्म हूँ तू जहल, मैं आदम हूँ तू शैतां । इसे पढ़कर मौलवी साहब के होश ठिकाने आ गये। ड्यूक आव् ऐडि के विवाहोत्सव पर पामर ने एक मसनवी लिखी थी। उसका कुछ अंश सुन लीजिए- किसकी यह शादी है किसकी यह फ़ौज जोश मारे है यह किस दरिया की मौज । तब कहा एक शख्स ने तू इस क़दर हैगा जहाँ के वेखबर । ड्युक आव् ऐडिनबरा है जिसका नाम धाक से लग्जे है जिसके रूम व शाम । + + + मुन के यों बोला दोआ कर पामर नित रहे इम शमा से पुरनूर घर। 1873 में फारिम के तत्कालीन शाह विलायत गये। उनकी इस यात्रा का सविस्तर हाल पामर ने उर्दू में लिखा। वह 'अवध-अख़बार' में निकला। इस लेख के कुछ खण्डों को हम, पामर के उर्द-गद्य के नमूनों के तौर पर, आगे उद्धृत करते हैं। हाल से