पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अध्यापक एडवर्ड हेनरी पामर /311 बदौरश खलायक गिरफ़ता हुजूम, मदाये खुशी ख़ास्त हरसू उमूम, चे खुलके कि अज़ दस्ते फैजाने शाह, जे अकलो जे दानिश शवदरु बराह । (2) मुबारक मुबारक सलामत शहा । सदाये रसीदा जे चर्खे बरी, मुबारक शहा मक़दमे ई ज़मी, जवाबे रसीदा जे अफ़लाक वाज, मुबारक शलामत शहे वेनियाज । शहे पारिस आमद जे शुकरे अयाँ, न अज कस्दे तस्वीरे मुल्को जहाँ, मगर ई कि हामिल कुनद नामे नेक, शवद अज़ सखावत सर अंजामे नेक। गुजारद हमी तेगे खुद दर गिलाफ़, कि सुलहो अमाँ वेह जेलाफ़ो गज़ाफ़, वरुवाहद कि मानिन्दे शाहंशहा, व मानद बसे नामेऊ दर जहाँ । एक दिन शाह गुप्त रीति से शीश महल (Crystal Palace) देखने गये। उनका मादा वेश देखकर लोगों ने उन्हें शाह का कोई नौकर समझा। पामर ने इस घटना का वर्णन इस प्रकार किया है- बादशाह मे बजरिये मुतरजिम, जो फ़रासीसी ज़बाँ जानता था, पूछा कि तुमको बादशाह की सरकार में कौन ओह्दा है । बादशाह ने फ़रमाया-खिदमतगारे ख़ाम और मोतमदअलेह । और, चन्द हमराहियो ने कहा कि वादशाह इस पर बहुत एतमाद रखते है। सदहा महलका दुलरान फ़रंग ने इश्तियाक गर्मजोशी और लमसे अनामिल फ़ैज़शवामिल जाहिर किया। अक्सरो को आला हजरत ने सरफ़राज़ फ़रमाया । पामर से शाह को भेंट फिर हाल इस बे-परोबाल का पुछा और फरमाया-'निज्द बया- फ़ारसी ओ अरबी याद गिरफ्ता?' पामर-'फ़ारसी अज सैयद अब्दुल्ला व अरबी अज़ अरबो दर ई जा व हम दर अरवरफ़्ता आमोख़तम् ।' फ़रमाया कि-'मन शनीदाअम तू शायरे फ़ारसी हस्ती।' पामर -'ई हेचमदा कम कम मीगोयद, न लायके समाअते बन्दगाने आला -कुजा हज़रत ।'