बुकर टी० वाशिंगटन-1 /319 स्त्रियाँ और पुरुष दोनों) शारीरिक श्रम करना नीच काम समझते थे। प्रायः अधिकांश लोग कृत्रिम सुख से मोहित होकर गजनैतिक हलचलों में शामिल होना ही अपना कर्तव्य ममझते थे। सारांश यह कि उन लोगों ने अपने जीवन की अनेक आवश्यकतायें कृत्रिम रीति से बटा ली थी, परन्तु उनमें अपनी सब आवश्यकताओं की पूर्ति करने की योग्यता न थी। नगरनिवासियों का मोहक जीवनक्रम देखकर वाशिंगटन के भी मन में एक राजनैतिक हलचल में शामिल हो जाने इच्छा उत्पन्न हुई। परन्तु वह अपने जीवन के पवित्र उद्देश को भूल नहीं गया था। कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय और अन्तःकरण (Hand, Head and Heart) की शिक्षा से अपनी जाति की उन्नति करना ही उसका प्रधान उद्देश था। अतएव उसने इसी उद्देश की सफलता के लिए यत्न करते रहने का दृढ़ निश्चय कर लिया। इसके बाद, जिस हैम्पटन स्कूल में उसने विद्याभ्यास किया था वहीं उसने दो वर्ष तक शिक्षक का काम किया और सुप्रसिद्ध शिक्षक हो गया। जाति-सेवा का आरम्भ सन् 1881 ईसवी में, अर्थात् तेईस-चौबीस वर्ष की उम्र में, बुकर टी० वाशिगटन हैम्पटन में शिक्षक का काम कर रहा था। इसी समय उसे स्वतन्त्र रीति से जाति-सेवा और परोपकार करने का प्राप्त की हुई शिक्षा को सफल करने का-अपने जीवन को सार्थक करने का मौक़ा मिला। दक्षिणी अमेरिका की आलवामा रियामत के टस्केजी नामक छोटे से गाँव के कुछ निवासियों ने जनरल आर्मट्रांग को एक चिट्ठी भेजी और यह लिखा कि हम लोग अपने गाँव में काले आदमियों की शिक्षा के लिए एक माडल स्कूल (आदर्श पाठशाला) खोलना चाहते हैं। आपके पास कोई अच्छा शिक्षक हो तो भेज दीजिए। जनरल आर्मस्ट्रांग ने मिस्टर वाशिगटन को वहाँ भेज दिया। इस विषय में वाशिगटन ने लिखा है कि-"टस्केजी जाने के पहले मैं यह सोचता था कि वहाँ इमारत और शिक्षा का सब सामान तैयार होगा; परन्तु वहाँ जाने पर जब मैंने यह देखा कि न इमारत है और न कोई सामान है तब मैं थोड़ी देर के लिए निराश हो गया। हाँ, इसमें सन्देह नहीं कि सैकड़ों इमारतों और सामान से अधिक मूल्यवान् अनेक मनुष्य शिक्षा के लिए आतुर और उत्सुक मुझे देख पड़े !" महीने दो महीने तक वाशिगटन ने उस प्रदेश के निवासियों की सामाजिक और आर्थिक दशा की अच्छी तरह जांच की और जुलाई की चौथी तारीख़ को गिरजाघर के पास ही एक टूटी सी झोपड़ी में पाठशाला खोल दी। इस पाठशाला में वाशिंगटन ही अकेले शिक्षक थे। लडके और लड़कियां मिलकर सब 30 विद्यार्थी थे। वे सब व्याकरण के नियम और गणित के सिद्धान्त मुखाग्र जानते थे; परन्तु उनका उपयोग करना न जानते थे। वे शारीरिक श्रम न करना चाहते थे। वे यह समझते थे कि मिहनत करना नीच काम है। ऐसी अवस्था में, पहल पहल वाशिगटन को अपने नूतन तत्त्वों के अनुसार शिक्षा देने में बहुत कठिनाइयाँ हुईं। उन्होंने आलबामा रियासत की सामाजिक और आर्थिक दशा का विचार करके यह निश्चय किया कि इस प्रान्त के निवासियों को कृषि-सम्बन्धिनी शिक्षा दी जानी चाहिए और एक या दो ऐसे भी व्यवसायों की शिक्षा देनी चाहिए जिनके द्वारा
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