पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३२४

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320 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली लोग अपना उदर-निर्वाह अच्छी तरह कर सकें। उन्होंने ऐसी शिक्षा देने का निश्चय कर लिया जिससे विद्यार्थियों के हृदय में शारीरिक श्रम, व्यवसाय, मितव्यय और सुव्यवस्था के विषय में प्रेम उत्पन्न हो जाय; उनकी बुद्धि, नीति और धर्म में सुधार हो जाय; और जब वे पाठशाला से निकलें तब अपने देश में स्वतन्त्र रीति से उद्यम करके सुख प्राप्ति कर सकें तथा उत्तम नागरिक (Citizen) बन सकें। इन तत्त्वों के अनुसार शिक्षा देने के लिए वाशिंगटन के पास एक भी साधन की अनुकूलता न थी। जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा तक उनके पास न था। इतने में उन्हें मालूम हुआ कि टस्केजी गांव के पास एक खेत बिकाऊ है। इस पर हैम्पटन के कोषाध्यक्ष से 750 रुपया क़र्ज लेकर उन्होंने वह जमीन मोल ले ली । उस खेत में दो-तीन झोंपड़ियाँ थीं। उन्ही में वे अपने विद्यार्थियों को पढ़ाने लगे। पहले पहल विद्यार्थी किसी प्रकार का शारीरिक काम न करना चाहते थे; परन्तु जब उन लोगों ने अपने हितचिन्तक शिक्षक, मिस्टर वाशिगटन, को हाथ में कुदाली-फावड़ा लेकर काम करते देखा तब वे भी बड़े उत्साह से काम करने लगे। धन की आवश्यकता ज़मीन मोल लेने के बाद इमारत बनाने के लिए धन की आवश्यकता हुई। धन के बिना कोई भी उपयोगी काम नहीं हो सकता। तब कुमारी डेविडमन (टस्केजी पाठशाला की एक अध्यापिका) और मिस्टर वाशिंगटन ने गाँव-गाँव भ्रमण करके द्रव्य इकट्ठा किया । यद्यपि इस काम में वाशिंगटन को अनेक निद्रा-रहित रात्रियों व्यतीत करनी पड़ी, तथापि अन्त में परमेश्वर की कृपा से उनके मब यत्न सफल हुए। धन इकट्ठा करने के विषय में मिस्टर वाशिंगटन के नीचे लिखे अनुभवसिद्ध, नियम बड़े काम (1) तुम अपने कार्य के विषय में अनेक व्यक्तियों और संस्थाओं को अपना सारा हाल सुनाओ। यह हाल सुनाने में तुम अपना गौरव समझो। तुम्हें अपने कार्य के विषय में जो कुछ कहना हो संक्षेप में और साफ़-साफ़ कहो। (2) परिणाम या फल के विषय में निश्चिन्त रहो। (3) इस सिद्धान्त पर विश्वास रक्लो कि संस्था का अन्तरंग जितना ही स्वच्छ, पवित्र और उपयोगी होगा उतना ही अधिक उसको लोकाश्रय भी मिलेगा। (4) श्रीमान् और ग़रीब दोनों से सहायता मांगो । मच्ची सहानुभूति प्रकट करने वाले सैकड़ों दाताओं के छोटे-छोटे दान पर ही परोपकार के बड़े-बड़े कार्य होते है। (5) चन्दा इकट्ठा करते समय दाताओं की सहानुभूति, सहायता और उपदेश प्राप्त करने का यत्न करो। इम प्रकार यत्न करने पर, टस्केजी संस्था की उन्नति के लिए, अनेक श्रीमान् तथा साधारण लोगो ने गुप्त तथा प्रकट रीति से वाशिंगटन की सहायता की। - म.हि.to-4