344 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली जिस रचना का सर्वस्व आत्मा का विकास नहीं, वह कविता ही नहीं। कवि समस्त विश्व का प्रेमी है। उसके जीवन का आधार यही अनन्त प्रेम है : जो दूसरे के लिए विघ्न-स्वरूप हैं वे उसके प्रेमानल में आहुति का काम देते हैं। उनके सम्पर्क से उसका आनन्द और भी अधिक बढ़ जाता है । उसके लिए बाधा है ही नहीं। न दुःख है, न मृत्यु है, न अन्धकार है और न भय है । कवि न तो सदुपदेश देता है और न लेता है। वह अपनी आत्मा को जानता है । इसी में वह अपना गौरव समझता है । इस आत्मगौरव के साथ उसकी सहानुभूति अनन्त है। इसी भाव के कारण वह विश्व को अपने में और अपने को विश्व में देखता है। जब वाल्ट ह्विटमैन ब्रुकलिन में था तब घण्टों खड़े खड़े लोगों की भीड़ देखा करता था। उसी से उसे अपनी कविता के लिए सामग्री मिलती थी। उसके शरीर में एक प्रकार की आकर्षण-शक्ति थी जिससे लोगों की दृष्टि उस पर अनायास खिच जाती थी। कानवे नाम के एक सज्जन एक बार उसे देखने गये थे। उन्होने लिखा है- "उस दिन बड़ी गरमी थी । सूर्य के तीव्र उत्ताप से लाँग आइलैंड की भूमि तप रही थी। उस समय मैंने वाल्ट ह्विटमैन को धूप में लेटे हुए पाया। उसके कपड़े भूरे थे। सूर्य-ताप से शरीर का रंग भी वैसा ही हो गया था। पृथ्वी पर लेटा हुआ वह महसा पहचाना न जा सकता था। ऐसा जान पड़ता था कि वह और पृथ्वी दोनों एक हैं।' जिस घर में बिटमैन रहते थे उसमें एक ही कमरा था। सामान भी बहुत कम। किताबों में बाइबिल, होमर नामक ग्रीक कवि का काव्य और शेक्सपियर के नाटक । यही उसे खूब पसन्द थे। इन्हें वह सदा जेब में रक्खा करता था। 1862 में जब उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका में परस्पर युद्ध आरम्भ हुआ तब वाल्ट ह्विटमैन ने उत्तरी अमेरिका का पक्ष ग्रहण किया। उसका भाई जी० डब्ल्यू० ह्विट- मैन सेना-विभाग में अफ़सर था। जब वह घायल हुआ तब ह्विटमैन ने स्वयं जाकर उसकी सेवा-सुश्रूषा की। 10 साल तक वह बल्लमटेर फ़ौज में रहा। 1866 में उसने युद्ध- विषयक कवितायें प्रकाशित की। 1873 में उसको लकवा मार गया। इससे वह क्षीण- शक्ति हो गया। तव वह कैमडन नाम के एक नगर मे जाकर रहने लगा। वही उमकी मृत्यु, 1892 में, हो गई। इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में इस कवि के विषय में लिखा है-"His life was a poet's life from first to last-free, unwordly, unhurried, uncontentional, unselfish and was contentedly and joyously lived." अर्थात्-ह्विटमैन का जीवन आदि से अन्त तक कवि का जीवन था। कैमा जीवन ? स्वच्छन्द, विरक्त, शान्तिमय, मन्तुष्ट और आनन्द-पूर्ण । [जून, 1920 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित।]
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३४८
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