पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३५३

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लुई पास्टुर / 349 सौभाग्य से उसे एक अच्छा अवसर भी मिल गया। बलार्ड ने उसे रासायनिक प्रयोग- शाला में सहकारी के पद पर नियुक्त कर दिया। तब से वह अनुसन्धान करने लगा और शीघ्र ही उसकी कीत्ति फैल गई। जब उसने पहले पहल रसायन-शास्त्र में एक खोज की तब किसी ने उसके कथन को प्रामाणिक न माना। बिआट (Biot) साहब विज्ञान के धुरन्धर आचार्य समझे जाते थे। पास्टुर से उनका परिचय हो गया था। उन्होने भी पास्टुर की बातों पर विश्वास न किया । पर जब पास्टुर ने उनके सामने प्रयोग करके अपने कथन को प्रमाणित कर दिया तब वे चकित हो गये। उन्होंने पास्टुर की बड़ी प्रशंसा की। बस, उसी दिन से पास्टुर की गणना विज्ञान- विशारदों में होने लगी। स्टैस्वर्ग में फेकल्टी आव् माइन्स में तुरन्त ही उसे रमायन-शास्त्र के अध्यापक का पद मिल गया। यहीं उसने एक सुन्दरी का पाणि-ग्रहण किया। धीरे-धीरे उसकी कीत्ति बढ़ने लगी। 1854 में वह लिली में विज्ञान का अध्यापक नियुक्त हुआ। यही उसने वह खोज की जिसके कारण उसका नाम सर्वत्र फैल गया। बीअर (Beer) आदि शराब प्रायः बिगड़ जाती थी। उसमें यह एक तरह का रोग था। इस गेग का प्रतीकार कोई भी वैज्ञानिक नहीं कर सका। एक बार पास्टुर साहब शराब की किसी भट्ठी में गये। वहाँ अच्छी और बुरी, दोनों तरह की, शराब मौजूद थी। उन्होंने खुर्दबीन से ख़मीर की जांच की। अच्छी शराब में जो दाने (Globules) थे वे तो गोलाकार थे, पर ख़राब शराब के दाने टेढ़े मेढ़े थे। इसी से उन्होंने यह सिद्ध किया कि स्वयमेव उत्पत्ति की कल्पना भ्रमपूर्ण है। अभी तक खमीर का विषय बड़ा रहस्यमय था । पास्टुर ने ही मबसे पहले उसे स्पष्ट कर दिया। उन्होंने बतलाया कि ख़मीर में जो विकार होते हैं उनका कारण फ़रमेंट (Ferments) नामक जीवाणुओं का अस्तित्व और उनकी वृद्धि है । यदि ये जीवाणु किसी प्रकार से निकाल दिये जायें तो फिर कोई भी विकार न हो । जिस हवा से जीवाणु निकाल दिये गये हों वहाँ रक्खे रहने से दूध हमेशा मीठा बना रहेगा। तब यह प्रश्न होता है कि हवा मे दूध को खुला छोड़ देने से वह खट्टा क्यों हो जाता है। क्या ये सूक्ष्म जीवाणु हमेशा ही हवा में बने रहते है ? क्या ये ख़मीर होने योग्य रस के सम्पर्क से उत्पन्न नहीं होते । इसी बात पर बहुत दिनो तक वैज्ञानिकों में विवाद होता रहा। परन्तु अन्त में जीत पास्टर साहब ही की हुई । उन्होंने प्रमाणित कर दिया कि हवा से जीवाणुओं के निकाल लेने पर किसी प्रकार का विकार नही हो सकता । पास्टर साहब के इम आविष्कार से बड़ा लाभ हुआ। लिस्टर नामक एक साहब ने चीर-फाड़ की क्रिया में इसका उपयोग बड़ी सफलता से किया। पास्टुर की बड़ी प्रतिष्ठा हुई । अन्य देशों ने भी उसका सम्मान किया। इकोली नारमेली (Ecole Normale) में उसको एक प्रतिष्ठित पद मिला। परन्तु यह सम्मान उसे यों ही नहीं मिल गया। इसके लिए बड़े बड़े विरोधों का सामना करना । उसके कई मित्र तक उसके विरोधी हो गये थे । बिआट (Biot) उसे पुत्रवत् मानता था। परन्तु उसने साफ़ साफ़ कह कि पास्टुर का कार्य बिलकुल भ्रम-पूर्ण है; उसे सफलता मिलने की नहीं। डूमा ने भी उसे यह काम छोड़ देने की सलाह दी। परन्तु पास्टुर अपने सिद्धान्त