पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३५५

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लुई पास्टुर/351 कुछ अंश निकाल कर किसी नीरोग कुत्तं के शरीर में प्रविष्ट कर दिया जाय तो वह कुत्ता भी पागल हो जायगा । तब पास्टुर ने इसमें टीका लगाने के सिद्धान्त का प्रयोग किया। उन्होंने देखा कि जिन कुत्तों के टीका लगाया गया है उन्हें पागल कुते के काट खाने पर भी रोग नहीं होता । इस पर उन्होंने इस बात की परीक्षा आरम्भ की कि पागल कुत्ते के काट लेने के बाद टीका लगाने से लाभ होता है या नहीं। इसमें उन्हें सफलता हुई । तब उन्होंने इस रोग को दूर करने के लिए चिकित्सालय खोला । हजारों मनुष्यों की चिकित्सा करके उन्होंने बड़ा नाम कमाया । आजकल सभी देशों में पास्टुर माहब के चिकित्सालय खोले गये हैं। ये सब पास्टर इन्स्टिट्यूट (Pasteur Institute) कह- लाते हैं। भारतवर्ष में इस तरह के दो चिकित्सालय हैं । एक तो नीलगिरि पर कोनूर नामक स्थान में, और दूसरा कसौली में । इस प्रकार अपने आविष्कारों से जगत् का असीम उपकार करके 28 सितम्बर, 1895 को पास्टर साहब ने अपना यह नश्वर शरीर छोड़ दिया। परन्तु उनका यशः- शरीर सदैव विद्यमान रहेगा-'कीतिर्यस्य स जीवति' । [दिसम्बर, 1920 की 'सरस्वती' में प्रकाशित ।]