356 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली - लिख देना चाहते हैं कि हम लोग 2 या 3 मिनट से अधिक अपने हाथ को दस्ताने के बाहर नही निकाल सकते थे। यदि इससे जरा भी अधिक देर लग जाय तो फ़ौरन ही बर्फदंश हो जाय । इतना जाड़ा पड़ने पर भी मुंह के आस-पास का भाग बिलकुल खुला रखना पड़ता था । अगर खुला न रक्खा जाय, या किसी चीज से ढक दिया जाय, तो मुंह से निकली हुई साँस फ़ौरन जम जाय, यहाँ तक कि उसके जमने से आँखों की वीरनियाँ चिपक जायें । ऐसा होने से हम लोग कुछ देर के लिए अन्धे हो जायँ । नंगे हाथ से हम लोग धातु की कोई चीज नही छू सकते थे । अगर छूते तो फौरन ही एक मफेद-सफेद दाग़ पड़ जाता और उम जगह पर बर्फदश की पीड़ा होने लगती । एक दिल्लगी सुनिए । एक टीन में कोई चीज रक्वी थी । वह टीन बर्फ के ऊपर पड़ी थी। उसे हमारे एक कुने ने देखा और जबान को भीतर डालकर उसे वह चाटने लगा। बम दो तीन दफे जबान लगाने की देर थी कि वह वही चिपक गई । कुत्ता वेचाग चीखने और दर्द से बेक़गर होने लगा । यह तमाशा एक खलासी ने देखा । वह वहाँ दौड़ा गया । बलपूर्वक उम टीन को कुने की जबान से अलग किया। जोर से जाडा पड़ने के पहले हम लोगो ने अपनी छोटी-छोटी वेपहिये की गाडियों में कुत्ते जोते और जहाज से कुछ दूर आगे का सफर करना विचाग । हम लोग रवाना हुए । बारह घण्टे तक हम बाहर रहे। इस बीच मे बर्फ का एक मख्न नूफान आया। इससे हम लोगो की बड़ी दुर्दशा हुई । मुंह में और हाथों में भी, बर्फदंग की पीड़ा होने लगी। इसलिए हमने तत्काल अपने छोटे-छोटे खेमे बड़े किये और बड़ी मुश्किल से हाथ पैरों के बल पर रेंगकर उनके भीतर हम सब गये । यदि ऐसा करने में और जरा देर हो जाती तो हम लोगो का काम वही तमाम हो जाता । लेफ्टिनेंट रायडस और मिस्टर स्केल्टन भी कुछ आदमियो के माथ, बेपहिये की गाड़ियाँ लेकर, हमारे जहाज से कोई 60 मील दूर तक चले गये । इन गाड़ियों को कुत्ते खीचते थे । रास्ते में एक भयानक बफ का तूफ़ान आया। इस कारण इन लोगो को पांच दिन तक छोलदारी के भीतर वन्द रहना पड़ा । जब तूफ़ान बन्द हुआ तब इन्होने देखा कि छोलदारी के ऊपर नीचे, इधर-उधर सब कही बर्फ जम गई है। बड़ी कठिनाई से बर्फ को कुदारियो से काटकर ये लोग उसके भीतर से बाहर आये । समुद्र के जम जाने के कारण हम लोगों ने, इसी प्रकार, इन छोटी-छोटी गाड़ियो पर दूर-दूर तक सफ़र किया और जीव-जन्तु, वनस्पति, भूगोल और भूस्तर-विद्या-सम्बन्धी अनेक जाँचें की, और अनेक प्रकार की वस्तुओं के नमूने इकट्ठे किये। इस चढ़ाई में कुत्तों ने बड़ा काम किया। हमारे पाम 23 कुत्ते थे । क्या ही अच्छा होता यदि हम लोग अधिक कुत्ते ले गये होते। एक-एक कुत्ता सवा मन के क़रीब वोझ मे लदी हुई गाड़ी ग्वींचता था। इन कुत्तों में कुछ कुतियां भी थीं । जाड़े में उनसे 9 पिल्ले पैदा हुए । परन्तु वे बहुत छोटे हुए । वे अपने मां-बाप के न तो डील-डौल में बराबर हा और न बल में। हमारे साथ एक बिल्ली भी थी। एक दफे रात को हमारे झोंपड़े के ऊपर वह गई । वहां वह कुछ अधिक देर तक रही। जब वह भीतर आई तब हम लोगों ने देखा -
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