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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३६१

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यमलोक का जीवन /357 , कि उसका एक कान ही नदारद है। अगर ज़रा देर वह और वहाँ रहती तो शायद वह वहाँ से जिन्दा न लौटती। आठ बजे सुबह हम लोग भोजन करते थे। खाने की सामग्री में हलवा, मील मछली का गोश्त, रोटी, मक्खन, मुरब्बा, चाय और कहवा मुख्य चीजें थी। 9 बजे ईश्वर की प्रार्थना होती थी। प्रार्थना-पाठ जहाज का कप्तान करता था। फिर मव आदमी अपने-अपने काम में लग जाते थे। कुछ आदमी मोने के वास्ते थैलियां मीते थे। इन्ही थैलिया के भीतर हम लोग रात को घुसे रहते थे। कुछ उन थैलियों की और दूसरे कपड़ो की मरम्मत करते थे, कुछ जहाज के ऊपर जमे हुए वर्फ को साफ करने थे, कुछ जहाज पर पड़े हुए मोम-कपड़े की मरम्मत करने थे, क्योकि बर्फ के गिरने से उममे मैकडों छेद हो जाते थे । कुछ आदमी मील मछलियों और विडियो की खाल खीचकर उनमें ममाला भग्ने थे। ये चीजे इंगलैंड को लाये जाने के लिए नमूने के तौर पर रक्खी गई है । कुछ आदमी जलचर जीवो की तलाश में जाते थे; कुछ वनस्पतियो को खोजने निकल जाते थे; और कुछ भूस्तर-विद्या के विषय में ज्ञान प्राप्त करने को बाहर निकलते थे। एक बजे फिरप लोग भोजन करते थे । आठ बजे रात को जहाज की देख-भाल होती थी और बाद उसके हम लोग ताश वगैरह खेल कर सो रहते थे। हम लोगो ने 'माउथ पोलर टाइम्स' नाम का एक अख़ वार भी लिवना शुरू किया। वह महीने में एक बार लिया जाता था । जहाज पर जिनने अफ़मर थे, सब उसमें लेख लिखते थे; और लोग भी कोई-कोई उसमें लिखते थे। लेखो में इस चढाई का मविस्तर वर्णन रहता था । इस अखबार के अक अभी तक प्रकाशित नहीं हुए । चढ़ाई के लौट आने पर वे इंगलैंड में प्रकाशित होंगे। वहाँ वाहर कोई पौधा नही हो सकता था। मगर हम लाग इंगलैंड से एक बक्स में थोड़ी सी मिट्टी ले गये थे। उसी में हमने 'क्रोक्यूसेज़' नामक पौधे के बीज बोये। उनमें से दो पौधे हुए । फूल भी उनमें यथासमय निकले। 'गुड फ्राईडे' को हम लोग उन फूलो को देखकर बहुत प्रसन्न हुए । हमारे जहाज में वह मानो हमारा एक छोटा-सा फूलबाग - था। किसी-किमी रात का दृश्य बड़ा ही मजेदार था। जिस समय पूरा चन्द्रबिम्ब आकाश में उदिन होता था उस समय वह सारा प्रदेश दुग्धफेन के समान शुभ्र दिवाई देता था। कभी-कभी उनर की ओर, दूर सफ़ेद रोशनी का एक धुंधला पुज देव पडता था, जिससे मालूम होता था कि सूर्य ने अपना मुंह ढाँप रक्खा है; तथापि वह वही पर कहीं प्रकाशित है। इस महा विस्तृत और महा आतंक जनक सफेद मैदान की शोभा मैं नही बयान कर सकता। उससे अधिक सौन्दर्य्यमय वस्तु मैने संसार में दूसरी नहीं देती। कुछ दूर पर बर्फ से ढके हुए ऊँचे-ऊँचे पर्वत नज़र आते थे और आसमान को फाड़कर उसके भीतर घुस जाने की चेष्टा सी करते थे। पास ही वह ज्वालामुखी पर्वत अपने भग्निवी मुंह से धुर्वे के प्रचण्ड पुज छोड़ रहा था। अहः, क्या ही हर्ष और विस्मय से भरा हुआ दृश्य था 22 अगस्त को सूर्य ने हम लोगों को अपने पुनदर्शन से फिर कृतार्थ किया । हम