सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उत्तरी ध्रुव की यात्रा-2 / 375 26 घण्टे तक पीरी उत्तरी ध्रुव की जाँच करते रहे। वहाँ से पांच मील पर बर्फ के टूट जाने से समुद्र निकल आया था। उसकी गहराई नापने की आपने कोशिश की। पर थाह न मिली। इस नाप जोख में नापने का तार ही टूट गया। अब पीरी ने बड़ी फुर्ती से लौटने की ठानी। लौटते वक्त उन्होंने अपनी रफ्तार और भी बढा दी। जितनी दूरी को उन्होंने जाते समय 26 पड़ाव में से किया था उतनी को लौटती वार सिर्फ 15 पड़ाव में से किया। इस प्रकार दौडने में साँड़नी सवार को भी मात करके कमांडर साहब 23 एप्रिल को कोलंबिया अन्तरीप तक पहुँच गये। दो कूची में वे अपने जहाज़ 'रूजवेल्ट' के पास आ गये और उसे सुरक्षित पाया । दो महीने तक वही रहकर उन्होंने कितने ही प्रकार की वैज्ञानिक जाँच की। इस बीच में जो सामग्री मार्ग के पड़ावों मे रह गई थी वह भी वापस आ गई। 18 जुलाई 1909 को वहाँ से कूच हुआ। 5 दिसम्बर को वे लबराडोर मे पहुँच गये। वही से आपने तार दिया-"उत्तरी ध्रुव पर मैं अमेरिका का झण्डा गाड़ आया।" 1 [दिसम्बर, 1909 को 'सरस्वती' में 'उत्तरी ध्रुव का का आविष्कार' शीर्षक से प्रकाशित । 'प्रबन्ध पुष्पांजलि' में संकलित।