उत्तरी ध्रुव की यात्रा और वहाँ की स्कीमो जाति / 377 बहुत पतली होती है । ऐसी जगह चलना बड़ा ही भयंकर है । यदि वह मनुष्य के बोझ से टूट जाय तो मनुष्य वहीं अथाह सागर में समा जाय । फिर उसकी प्राण-रक्षा किसी भी तरह नहीं हो सकती। जो लोग उत्तरी ध्रुव की यात्रा के लिये निकलते हैं वे जहाज पर ग्रीनलैंड पहुँचते हैं । वही से कुछ दूर आगे तक भी वे जहाज़ पर जा सकते हैं। राह में उन्हें पानी-ही-पानी नहीं दिखाई देता है। बर्फ के बड़े-बड़े पहाड़ पानी पर तैरते हुए दिखाई देते हैं। कहीं- कही तो बर्फ की इतनी अधिकता हो जाती है कि बिना उसे तोड़े जहाज़ आगे बढ़ ही नहीं सकता । और फिर, जो कही सग्दी के कारण समुद्र का पानी जम गया और जहाज़ वहीं फंस गया तो जहाज़ वालो की जान गई ही समझिये । अद्भुत सहन-शक्ति रखने वाले बलवान मनुष्य ही ध्रुव-प्रदेश की यात्रा कर सकते हैं । माधारण सरदी से भी बीमार हो जाने वाले मनुष्य इस यात्रा के योग्य नहीं। लोमश चमड़े के मोटे-मोटे कपड़े ही वहाँ काम दे सकते हैं। उनके भी ऊपर पानी से बचने के लिये एक ऐसा ओवरकोट (Overcoat) पहनना पड़ता है जिसके भीतर पानी न प्रवेश कर सके । फिर भी यदि शरीर का कोई भाग म्बुला रह गया तो सरदी अपना काम किये बिना नहीं रहती और मनुष्य की जान के लाले पड़ जाते हैं । यदि राह में जूता फट जाय और दूसरा जूता पास न हो तो भी खैर नही । जब बर्फ का तूफ़ान जोरों से चलता है तब यात्रियों की नाक से खून बहने लगता है। हवा बहुत ज्यादा ठण्डी होने और तेजी से चलने से भी कभी-कभी मनुष्य मर जाता है । जब आदमी को सरदी लग जाती है तब उसे नीद बहुत आती है । उस समय यदि वह सो जाय तो उसके शरीरवर्ती रुधिर की गति बन्द हो जाय और वह मर जाय । प्रतिदिन यात्री कोई 20 मील की यात्रा कर सकता है, अधिक नहीं। जहाँ ठहरना होता है वहाँ बर्फ के झोंपड़े बना लिये जाते हैं। उनके भीतर यात्री तेल और स्पिरिट (Spirit) की सहायता से आग जलाते और उस पर चाय तैयार करते हैं । वहाँ पानी तो मिलता ही नहीं। आग से वर्फ गलाकर ही पानी बनाया जाता है । रहने के लिए बनाया गया वर्फ का झोंपड़ा भी निरापद नही। उसे भी विपत्ति का घर ही समझना चाहिए। उसके नीचे यदि समुद्र हो और उसके ऊपर बर्फ की तह पतली हो, तो उसके फटने का डर रहता है। यदि वह फट पड़े तो झोपड़े के भीतर विश्राम करने वाले यात्रियों का फिर कहीं पता न मिले। ध्रुव-प्रदेश में हमारे यहाँ की तरह दिन और गत नही होती । साल भर में केवल एक ही दिन और एक ही रात होती है-अर्थात् छ: महीने का दिन और छ: महीने की रात । घड़ी देखकर ही वहाँ समय का अन्दाजा लगाया जाता और दिन-रात का अनुमान किया जाता है। गूर्य के प्रकाश से चारो ओर फैली हुई बर्क की गशियाँ जगमगाया करती हैं। यदि यात्री हरे रंग के ऐनक लगाकर इस चमक से अपने नेत्रो की रक्षा न करे तो वह अन्धा हो जाय । उत्तरी ध्रुव के पास पहुंच जाने वाले को दिशाओं का ज्ञान नही होता । उसको उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम, सभी दिशाएं एक-सी जान पड़ती हैं। वह जिस ओर
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