378 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली जायगा उसे वह दक्षिण ही कहेगा। बात यह है कि सूर्य्य आकाश के मध्यबिन्दु के पास गोलाकार घूमा करता है। इसी कारण उत्तरी ध्रुव के पास पहुँचने वाले यात्री को सभी दिशाएँ दक्षिण ही सी जान पड़ती हैं। उत्तरी ध्रुव में जब दिन होता है तब सर्वत्र प्रकाश-ही-प्रकाश दिखाई पड़ता है, और जब रात होती है तब भयंकर अन्धकार के अतिरिक्त और कुछ नहीं नजर आता । इस प्रदेश में मनुष्य का नाम नहीं और वृक्षों तथा वनस्पतियों का कहीं निशान तक नही। चारो ओर बर्फ और दिन हुआ तो प्रकाश के सिवा और कुछ भी दृष्टिगोचर नही होता । अतिशय शीत और बर्फ के विकट तूफ़ानों का सदा राज्य रहता है । पर पाश्चात्य देशों के उत्साही, साहसी और कष्ट-सहिष्णु अनुसन्धानकर्ताओं के वर्षों के निरन्तर परिश्रम की बदौलत यह प्रदेश अव पहले की तरह दुर्भेद्य और दुर्गम नही रह गया। अब तो कुछ समय से खोज करने वालों का एक न एक दल वहाँ जाया ही करता उत्तरी ध्रुव-प्रदेश का समुद्र बहुत गहरा है। पाँच-पाँच, सात-सात सौ गज नीचे तक भूमि का कही पता नहीं। यदि वहाँ समुद्र न होता, भूमि होती, तो वहां की यात्रा इतनी कठिन न होती । जब जाड़ा खूब पड़ने लगता है तब समुद्र जम जाता है । इसी से जाड़ों ही में यात्रा करना सुभीते का होता है । गरमियों में यात्रा करना जान खतरे में डालना है । गरमी के दिनों में बर्फ गलकर पानी हो जाती है और जहां नहो भी गलती वहां इतनी पतली पड़ जाती है कि थोड़ा भी बोझ या दबाव पड़ने पर टूट जाती है । ध्रुव-प्रदेश में 23 सितम्बर को सूर्य अस्त हो जाता है और 21 मार्च तक अस्त रहता है। इस समय एक-दो महीने आगे-पीछे सायंकाल के सदृश अस्तकाल और अरुणोदय रहता है । अर्थात् उसी तरह का धूमिल प्रकाश रहता है जिस तरह का कि अन्यत्र मायं- काल देखा जाता है । हाँ, बीच के तीन महीनों में विलकुल ही अन्धकार रहता है । तब तक उत्तरी ध्रुव में जाड़े का मौसिम समझा जाता है। लोग इमी जाड़े के पिछले भाग में ध्रुव-यात्रा करते हैं। उन्हे सब काम अधिकतर अँधेरे ही मे करना पड़ता है। उस समय उमको घड़ी से बड़ी महायता मिलती है। जिस मनुष्य ने अँधेरे में दो-चार दिन भी विनाये हों वही सूर्य के प्रकाश का महत्त्व अच्छी तरह समझ सकता है। ध्रुव के आम-पाम, स्वच्छ आकाश में, तारों का प्रकाश भी भयदायक मालूम होता है । हर महीने मिर्प दम-बारह दिन निशानायक के दर्शन होते है। इतने दिन वह अस्त नहीं होता, हाँ, घटता-बढ़ता ज़रूर रहता है। वहाँ चाँदनी में इधर-उधर घूमना भी खतरे से खाली नही । कही बादल घिर आये तो चन्द्रिका छिप जाती है और घूमने वालो को रास्ता भूल जाने का बड़ा डर रहता है । चन्द्र के आम-पास बहुधा परिधि-मण्डल और कहीं-कहीं इन्द्रधनुप भी देख पड़ते हैं। कभी-कभी एक नहीं अनेक-सात-सात, आठ-आठ-झूठे चन्द्रमा भी दिखाई हैं। चन्द्रमा किरणे पर टेढ़ी होकर पड़ने से ये अलीक चन्द्र दिखाई पड़ते हैं। ग्रीनलैंड के उत्तरी किनारे की सरदी और गरमी से ही उत्तरी ध्रुव की सरदी और गरमी का अन्दाज़ा किया जाता है । वहाँ कम-से-कम दिसम्बर में शून्य के नीचे 53
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