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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३८३

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उत्तरी ध्रुव की यात्रा और वहां की स्कीमो जाति / 379 अंश तक सरदी और ज्यादा से ज्यादा जून में शून्य के ऊपर 52 अंश तक गरमी पड़ती है । यह गरमी हमारे देश में कड़ाके के जाड़ों के दिनों की-सी होती है । जाडों में यात्रियों को विशेष कष्ट नहीं होता; परन्तु सर्दी में रहने के कारण गरमियों में उन्हे जरा-मी भी गरमी बरदाश्त नहीं होती। ध्रुव प्रदेश में वर्षा नहीं होती। न कभी बादल गरजते है और न कभी बिजली चमकती है । बर्फ़ के तूफ़ान अलबत्त खूब आया करते हैं । इस प्रदेश में कोई भी खाद्य-पदार्थ नहीं होता । जो लोग वहाँ जाते है वे चाय, जमा हुआ द्ध, मांस, बिस्कुट और अन्य पदार्थ सब अपने साथ ले जाते हैं । शराब पीने से वहाँ बड़ी हानि पहुंचती है। वहाँ हर मनुष्य को प्रतिदिन कोई आध सेर मांस, आध सेर बिस्कुट, आध पाव जमा हुआ दूध और एक तोले चाय की दरकार होती है। कुत्तों के लिये मांस और आग जलाने के लिये तेल भी जरूरत होती है। भोजन का ठीक प्रवन्ध न होने के कारण यात्रियो को बहुधा बडी-बड़ी विपत्तियों का सामना करना पड़ता है। खाद्य पदार्थ चुक जाने से कितने ही यात्रियों को अपने प्राणो तक से हाथ धोना पड़ता है। ऐसा ही हुआ है कि भूख के मारे लोग अपने कुत्ते तक मारकर खा गये है। उनरी ध्रुव के पास ही ग्रीनलैंड में स्कीमो नाम की एक मनुष्य जाति रहती है। यात्रा में इस जाति के मनुष्यों से यात्रियों को बहुत सहायता मिलती है । बात तो यह है कि इन लोगों की सहायता बिना सभ्य संमार का कोई मनुष्य इस प्रदेश की यात्रा कर ही नही सकता। ये लोग उसी प्रदेश के रहने वाले हैं और यहाँ की भूमि के एक-एक टकड़े से जानकारी रखते हैं । इन लोगों के रहन-सहन का ढंग बड़ा ही विचित्र है। स्कीमो एक जगह टिककर कभी नही रहते । वे इधर-उधर घूमते ही फिरते हैं। आज यहाँ हैं तो कल वहाँ । माल-असबाब भी उनके पास बहुत नहीं होता । उनका रूप- रंग मंगोल जाति के आदमियों से कुछ-कुछ मिलता है । अन्तर इतना जरूर है कि वे रंग में उतने गोरे नहीं होते । पुरातत्त्ववेत्ता लोगों का खयाल है कि स्कीमो लोग वहाँ किसी समय साइबेरिया से आये होगे । जाड़ों में वे लोग मिट्टी और पत्थर के घर बनाते और उन्ही में रहते हैं । परन्तु शीत कम होते ही वे झपने घर छोड़ देते और सील नामक मछली के चमड़े के बने हुए तम्बुओं में रहने लगते है । ग्रीनलैंड में कस्तूरी-वृष (Musk Oxen) नाम का एक जानवर होता है । वे उसका तथा वहाँ के सफ़ेद रीछ, खरगोश, हिरन आदि जानवरों का शिकार करते और उन्हीं के मांस से अपना उदर-पोषण करते हैं। वे वालरस (Wallrus) और ह्वेल नाम के समुद्री जीवों का भी शिकार खेलते और उनका भी मांस खाते हैं। उस मांस को वे अपने कुत्तों को भी खिलाते है । स्कीमो जाति के लोगों का कोई धर्म नहीं। हाँ, भूत-प्रेतो को वे जरूर मानते और उनसे डरते भी बहुत हैं । अपने बच्चों और बूढो की वे खूब सेवा करते हैं । साफ़ रहना तो वे जानते ही नहीं । वे शायद ही कभी नहाते हों। जब शरीर पर बहुत मैल जम जाता है तब तेल मलकर उसे थोड़ा-थोड़ा करके उखाड़ डालते हैं । यात्री लोग वस्त्र, तम्बू बर्तन आदि चीजों का प्रलोभन देकर उनसे अपना काम निकालते हैं । उन्हें अन्य चीजों