पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उत्तरी ध्रुव की यात्रा और वहां की स्कीमो जाति / 384 कभी उसके छोटे-छोटे बच्चों तक को मारकर घर वाले उसी के साथ गाड़ देते हैं। मृत व्यक्ति के लिये अधिक समय तक शोक नहीं किया जाता। स्कीमो लोगों के देश में रातें बड़ी लम्बी होती हैं । पर वे तारों को पहचानते है । उन्ही को देखकर वे समय का हिसाब लगाते है । सप्तर्षियों के समुदाय को वे लोग हिरनों की टोली और कृत्तिका को कुत्तों की टोली कहते हैं । सूर्य को पुरुष और चन्द्र को वे स्त्री समझते हैं। स्कीमो लोग सील मछली के चमड़े की छोटी-छोटी डोंगियाँ बनाते है । उन्ही डोगियों पर सवार होकर ह्वेल और वालरस का शिकार करते हैं। ज़मीन पर शिकार खेलने में वे कुत्तों से बड़ी मदद लेते है । उनके कुने खूब मजबूत और चालाक होते हैं । थोड़ा भी खाकर कई रोज तक अच्छी तरह काम कर सकते हैं। वे पानी नहीं पीते । उसके बदले बर्फ खाते हैं । बर्फ ही उनका पानी है । बर्फ पर गाडियाँ घमीटने मे उनसे बढ़कर और कोई जानवर काम नहीं दे सकता । इन्ही कुत्तो और इनके स्वामी स्कीमो लोगों की सहायता से अमेरिका का कमांडर पीरी पहले-पहल उत्तरी ध्रुव के बहुत पास तक पहुंच सका था। दि स्कीमो लोगो और उनके कुत्तों ने उसकी तथा उसके पूर्ववर्ती अन्य यात्रियों की, जिनमें से बहुतों को हिम-राशियों ने अपनी गोद में सदा के लिये सुला लिया और जिनमें से कितने ही इन राशियों के गुप्त रहस्य को प्रकट करने में भी बहुत कुछ समर्थ हुए, सहायता न की होती तो आज अमेरिका के स्वातन्त्र्य और समता का सूचक झण्डा, अनन्त स्वतन्त्रता की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के दुर्गम दुर्ग, उत्तरी ध्रुव-प्रदेश के केन्द्र के बहुत पास न फहराता होता। [दिसम्बर, 1922 को 'सरस्वतो' में प्रकाशित । 'लेखांजलि' में संकलित ।]