पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३८६

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विस्यवियस के विषम स्फोट-1 पृथ्वी पहले एक प्रकार का जलता हुआ प्रवाही पदार्थ थी । लोहा और तांबा आदि धातु गलने पर जैसे तरल और अग्निमय हो जाते हैं, पृथ्वी भी वैसी ही थी। वह धीरे-धीरे ठण्डी हो गई है। उसके पेट में, परन्तु, अभी तक ज्वाला भरी हुई है । पृथ्वी का जो भाग समुद्र के पास है वहाँ बड़ी-बड़ी दरारों से, कभी कभी, पानी का प्रवाह पृथ्वी के जलते हुए पेट में चला जाता है । वहाँ आग का संयोग होने से पानी की भाफ हो जाती है और वह बड़े वेग से पृथ्वी के ऊपरी भाग को तोड़ कर बाहर निकलने का यत्न करती है। इस प्रकार की भीषण भाफ जब पृथ्वी के उदर में इधर उधर आघात करती है तभी भूकम्प आता है । जहाँ वह पृथ्वी को तोड़ कर ऊपर निकलने लगती है वहाँ ज्वालामुखी पर्वत हो जाते हैं। ऐसे पर्वतों के नीचे की भाफ निकल जाने पर वे शान्त हो जाते हैं। जब फिर कभी वहाँ पानी का प्रवाह पहुंचता है, तब फिर वहाँ की आग कुपित हो उठती है और उत्पन्न हुई भाफ पहले मार्ग से ऊपर निकलने लगती है । इस निकलने में पृथ्वी के उदर के पदार्थ वह ऊपर फेंकती है। पानी पहुंचने से पृथ्वी के पेट की ज्वाला कहीं कहीं अत्यन्त कुपित हो उठती है, और बटलोही के ढकने के समान, पृथ्वी के ऊपरी भाग को वह बलपूर्वक ऊपर उठा देती है। ऐंडीज और आल्प्स आदि ऊंचे ऊँचे पर्वत इसी प्रकार ऊपर उठ आये हैं । भूगर्भ-शास्त्र के जानने वालों ने इस बात को सप्रमाण सिद्ध किया है। जिन पर्वतों में पृथ्वी के ऊपर की उबलती हुई भाफ के निकलने का मार्ग हो जाता है, अर्थात् जिनमें भीतर से ऊपर तक, एक विशाल कुवाँ सा बन जाता है उनसे, कभी कभी, आग की विकराल ज्वाला निकल पड़ती है। ऐसे पर्वतों को ज्वालामुखी अथवा अग्निगर्भ पर्वत कहते हैं। संसार में जितने अग्निगर्भ पर्वत हैं उन सब में विस्यूवियस बड़ा ही भयंकर है । प्रशान्त महासागर के वेस्टइंडीज़ नामक द्वीपों में, उस वर्ष, जो एक ज्वालामुखी विस्फोट हुआ और उमसे एक शहर का विध्वंस हो गया, वह विस्यूवियस के हृत्कम्पकारी स्फोटों के मामने कोई चीज़ न था । विस्यूवियस, इटली में, नेपल्स की खाड़ी से थोड़ी दूर पर है। उसके चारों ओर घनी बस्ती है । अंगूर और शहतूत के बाग दूर दूर तक चले गये हैं तरु, लता, पशु, पक्षी और मनुष्यों से परिपूर्ण, ऐसी मनोहर भूमि के बीच, यह भीम भूधर खड़ा है । समुद्र की सतह से यह कोई 4,000 फुट ऊँचा है। जिस मुंह से विस्यूवियस ज्वलन्त पत्थर, राख, भाफ और धातु-रस उगलता है उसकी परिधि 5 मील है। यह अनादि अग्निगर्भ पर्वत है । किसी समय यह एक दूसरे ही मुख से ज्वाला वमन करता था। इस प्राचीन मुख का घेरा नये मुंह से भी बड़ा है। परन्तु उस मुंह ने चिरकाल से मौन धारण कर लिया है । विस्यूवियस की इस समय,