पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३८८

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384 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली में इस ज्वालामुखी पर्वतराज की फिर पहले की सी अवस्था हो गई। सब कहीं लतायें लटक गईं, घास से उसके शिखर लहलहे हो गये, अंकुर और शहतूत के उद्यान उसके आसपास उसकी शोभा बढ़ाने लगे। कितने ही गाँव बस गये । यह सब विस्यूवियस से देखा न गया। फिर भूडोल आरम्भ हुआ । छ: महीने तक पृथ्वी हिलती रही। 16 दिसम्बर 1631 ईसवी को फिर उदर-स्फोट हुआ । राख और पत्थर के समूह के समूह हृदयविदारी नाद करते हुए उड़ने लगे और सैकड़ों मील दूर जा जाकर गिरने लगे। यहाँ तक कि छोटे छोटे पत्थर कान्सन्टिनोपल तक पहुँचे । भाफ के पानी की प्रचण्ड नदियाँ बन गई। उनमें राख पत्थर मिल जाने से कीचड़ हो गया। कीचड़ के ये सर्वग्रासकारी भयावने नद बहे और अमीनाइन पर्वत के नीचे तक चले गये। इस बार गले हुए धातु और पत्थरों की अग्निरूपिणी नदियों के प्रवाह बहे, और महा भीषण रूप धारण करके पशु, पक्षी, मनुष्य, घास, फूस, वृक्ष, लता आदि को भस्म करते हुए बारह तेरह मुखों से समुद्र में आ गिरे । इस स्फोट में 18,000 मनुष्यो का संहार हुआ है। जब से यह स्फोट हुआ तब से विस्यूवियस को पूरी शान्ति नहीं मिली । बीच बीच में आप आग, पत्थर, भाफ, राग उगलते ही रहे हैं। 1766, 1767, 1779, 1794 और 1822 ईसवी में आपने विशेष पराक्रम दिखाया । 1794 ईसवी के स्फोट में पिघले हुए पत्थरों की एक धारा विस्यूवियस ने निकाली । वह 12 से 40 फुट तक गहरी थी। टोरडियल ग्रेको नामक नगर को तबाह करके वह 350 फुट तक समुद्र में चली गई । समुद्र में प्रवेश के समय वह 1200 फुट चौड़ी थी। 1822 ईसवी के स्फोट में धुर्वे के विशाल स्तम्भ 10,000 फुट तक आकाश में उड़े। 1855 में चट्टानों के टुकड़े 400 फुट तक ऊँचे उड़े और स्फोट के समय ऐसी घोर गड़गड़ाहटें हुईं कि लोगों का कलेजा कांप उठा । वे सब नेपल्स को भाग गये । कुछ दिन से विस्यूवियस की ज्वाला नमन करने की शक्ति क्षीण सी हो गई थी। परन्तु यह क्षीणता जाती रही है । अब फिर आपने विकराल रूप धारण किया है। फिर आप आग, पानी, ईट, पत्थर बरसाने लगे हैं । यह अद्भुत तमाशा देखने के लिए दूर दूर से लोग नेपल्स को जा रहे है । विस्यूवियस के पास एक यन्त्रशाला स्थापित है। वहाँ उसकी अग्नि लीला की दिनचर्या रक्खी जाती है और जो जो दृश्य दिखलाई पड़ते हैं उनका वैज्ञानिक विचार किया जाता है। 1880 ईसवी से वहाँ तार के रस्सो की रेल निकाली गई है। यह रेल विस्यूवियम के मुख से 150 गज़ तक चली गई है। इसी रेल पर लोग इस ज्वलन्त देव के दर्शन करने जाते हैं। हरक्युलैनियम और पाम्पियाई, जिनको विस्यूवियस ने 15 हाथ पृथ्वी के नीचे गाड़ दिया था और बहुत ढूंढ़ने पर भी जिनका कोई निशान तक न मिलता था, अब जमीन खोदकर निकाले गये हैं। हरक्युलैनियम एक छोटा सा नगर है; परन्तु पाम्पियाई बहुत बड़ा है । एक कुवा खोदते समय पाम्पियाई का पहले पहल पता 1748 ईसवी में लगा। तब से बराबर उसकी खुदाई और खोज हो रही है। विस्यूवियस से वह कोई एक ही मील दूर है । उसके मकान, उसके मन्दिर और उसकी नाटक शालायें आदि म.लि.र-4