पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३९१

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1 विस्यूवियस के विषम स्फोट-2/387 खबर आई । तीन मिनट के भूकम्प ने वहाँ की अनेक इमारतों को भूमिसात् कर दिया । इस कारण कितने ही घरों में आग लग गई और प्राय: तीन चौथाई शहर जलकर खाक हो गया। यह बहुत ही सुन्दर और बहुत ही बड़ा शहर था। आग लगने के कारण अनन्त धन और जन-समूह का नाश हो गया। उसकी सोलह सोलह बीस बीस मंजिला इमारतें गिर गई और आग लगकर राख हो गईं। वैज्ञानिको की राय है कि सान-फ्रांसिमको का भूमिकम्प और विस्यूवियम की अग्नि वर्षा, दोनों घटनायें, एक ही कारण से हुईं। यह कारण वही है जिसका उल्लेख ऊपर किया गया है। इसका ठीक ठीक पता नहीं लगता कि कब से ज्वाला वमन करने की शक्ति विस्यूवियस में आई । किमी किमी का ख्याल है कि वह अनादि काल से ज्वालामुखी है । एक पुस्तक में इस पर्वत के स्फोटों का बहुत ही विस्तृत वर्णन, अभी हाल ही में हमारे देखने में आया । अतएव उसके आधार पर फिर इस विषय पर कुछ लिखा जाता है। पुनरुक्ति माफ़ हो । इस पर्वत के ज्वाला उगलने का पहला वर्णन 79 ईसवी का है । यह इतना प्रलयंकर स्कोर शा कि विस्यूवियस के अग्निगर्भ मुख से निकली हुई राख से पाम्पियाई और कीचड़ से हरक्यूलैनियम ये दो शहर बिलकुल ही दब गये। इसके बाद 203 और 472 ईसवी में फिर दो छोटे छोटे स्फोट हुए। पर उनसे विशेष हानि नहीं हुई। 1500 ईसवी तक सब छोटे बड़े मिलाकर 9 स्फोट हुए । इसके बाद 1500 से 1631 तक विस्यूवियम बिलकुल ही शात रहा। इस बीच में एटना नाम के ज्वालामुखी ने खूब आग उगली और नोवा नाम का एक और ज्वालामुखी ज़मीन के पेट से निकल आया । कोई डेढ़ सौ वर्ष बाद विस्यूवियस के उदर में फिर आग भभकी। 16 दिसम्बर 1631 को फिर भयंकर स्फोट । खाक और पत्थरों की वर्षा शुरू हुई । पास के पांच सात नगरों का नाश हो गया। नेपल्म के भी बरबाद हो जाने के लक्षण दिखाई देने लगे । पर वह बच गया । हजारों आदमियों का नाश हुआ। वे जलकर, झुलसकर और दबकर मर गये। 1737, 1760 और 1767 में फिर अग्नि स्फोट हुए। उनसे बहुत कुछ हानि हुई। 1779 के स्फोट में 2000 फुट की ऊँचाई तक जलते हुए पत्थर उड़े। 1794 का स्फोट और भी अधिक भयंकर था। उसमें जलते हुए पदार्थों की तरल नदियाँ बह निकली और समुद्र में आ मिली। 19वी शताब्दी में 10 स्फोट हुए उनमें कई स्फोट बड़े भयंकर थे । अप्रैल 1872 का स्फोट सबसे अधिक भीषण था। इन दफ़े विस्यूवियस के चारों तरफ जलते हुए तरल पदार्थों की नदियाँ बड़े ही वेग से बहो । 4,000 फुट की ऊँचाई तक आग, पत्थर और गली हुई चीजें उड़ीं। रात्र तो 8,000 फुट की ऊँचाई तक उड़ी। तरल अग्नि की नदियाँ बह कर नेपल्स के पास तक पहुँच गई । पर शहर किसी तरह जलने से बच गया। इस स्फोट से कितने ही नगर विध्वन्स हो गये। 1895 में फिर एक स्फोट हुआ । पर उससे बहुत ज्यादा हानि नही हुई । यद्यपि अनेक प्रकार के यन्त्र बनाये गये हैं जिनसे भूकम्प की सूचना पहिले ही से हो जाती है और ज्वालामुखी पर्वतों के भावी स्फोट का भी ज्ञान हो जाता है, तथापि अनेक बार देखा गया है कि इन यन्त्रों ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया। वे इस