पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३९२

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388 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली प्रकार की सूचना देने के लिए जरूर हैं, परन्तु बहुधा वे इन दुर्घटनाओं का समाचार पहले ही से देने में असमर्थ हो जाते हैं । विस्यूवियस में भी एक वेधशाला है। उसमें अनेक प्रकार के बहुमूल्य यन्त्र हैं और वैज्ञानिक विद्वान् हमेशा वहाँ रहते हैं । वे विस्यू- वियस के दैनिक रंगढंग का हिसाब रखते हैं । पर गत अप्रैल के विस्यूवियस ने जो सहसा विकराल अग्नि-वर्षा शुरू कर दी. उसकी खबर उनको भी न थी। एकाएक भूमि कम्प होकर विस्यूवियस के मुंह से आग, पत्थर, राख और भाफ की वर्षा आरम्भ हो गई । विस्यूवियस के और कई स्फोटो की तरह यह स्फोट भी बहुत भयानक था । इसमें पत्थरों की बेहद वर्षा हुई। उसके डर से हजारों आदमी भाग भाग कर विशेष मजबूत घरों में जा घुसे; पर राख और पत्थरों की इतनी मोटी तह मकानो की छतों पर जमा हो गई कि उसके वज़न से छते गिर पड़ी और आदमी नीचे दब कर मर गये । जो बस्तियाँ पर्वत के नीचे, थोड़ी थोड़ी दूर पर, थी, उनका तो एकदम ही संहार हो गया। वे बिलकुल ही ध्वंस हो गई। बड़े बड़े कसबे, समूचे के समूचे, नष्ट हो गये-कोई जल गये, कोई राख पत्थरो के नीचे दब गये, कोई गिर कर भूमिसात् हो गये । मनुष्यों और पशुओ का कितना नाश हुआ, इसका हिसाब लगाना कठिन है । कोसो तक जहाँ खेत, वाटिकायें और अंगूर के बाग़ खड़े थे, वहाँ हरियाली की जगह ख़ाक बिछ गयी। विस्यूवियस के एक शिखर पर जो वेधशाला है वह ऐसी जगह है और इतनी मजबूत है कि 1872 ईसवी के स्फोट से भी उसे कम हानि पहुँची थी और इस बार इससे भी कम ही पहुंची है । वहाँ के अध्यक्ष, अध्यापक मटूकी, स्फोट के समय, वेधशाला के किवाड़ और खिड़कियां बम्द किये हुए बगबर भीतर बैठे रहे । यद्यपि उनके कितने हो यन्त्र टूट फूट गये और उन्हें बहुत कष्ट हुआ तथापि वे वहाँ से नही हटे। उन्होने स्फोट-मम्बन्धी बहुत सी बातें जानी है। शीघ्र ही वे सर्वसाधारण के लाभ के लिए प्रकाशित की जायेगी। उनकी इस वीरता और निर्भयता पर प्रसन्न होकर इटली के बादशाह ने, सुनते है, कोई खिताब दिया है। विलायती अख़बारों में इस स्फोट का वर्णन लिखे जाने तक धुवे के बादल विस्यूवियस के आस पास दूर दूर तक छाये हुए थे। यहाँ तक कि पास की खाड़ी में, अँधेरे के कारण, जहाजों का आना जाना तक बन्द था । इससे विस्यूवियस का डीलडौल अच्छी तरह देखने को नहीं मिला । परन्तु लोगो का अनुमान है कि जैसा 79 ईसवी में हुआ था वैसा ही इस दफ़े भी पर्वत का ज्वालागर्भ शिखर गिर कर चूर हो गया होगा। इमके सिवा और भी कितने ही रद्दो-बदल हुए होंगे । यह अजीव पहाड़ है। इसके शिखर इसी तरह टूटा फूटा करते हैं और फिर धीर धीरे, भीतर के पदार्थ ऊपर आ आकर उन्हें ऊँचा किया करते है या नये नये शिखर पैदा कर देते हैं। एक साहब ने विस्यूवियस के इस नये स्फोट का आँखों देखा हाल प्रकाशित किया है । वे कहते है स्फोट के एक दिन पहले इस बात की कुछ भी ख़बर लोगों को न थी कि कल विस्यूवियस आग उगलना शुरू करेगा। 24 घण्टे बाद, विस्यूवियस के ज्वाला- गर्भ मुंह से धुवे के वादल निकलने लगे। धीरे धीरे उनका परिमाण बढ़ा । धुवाँ नेपल्स तक पहुंचा और सारे शहर में छा गया। कुछ देर में जोर से हवा चलने लगी और उसके -