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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३९८

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ढाई हजार वर्ष की पुरानी कबरें इंगलैंड में कार्नवाल एक सूबा है । उसके उत्तर, समुद्र के किनारे, 'हारलीनबे' नामक एक जगह है । वहाँ कोई ढाई हजार वर्ष की पुरानी कबरें निकली हैं । इतनी पुरानी कबरें आज तक किसी और पश्चिमी देश में नहीं निकली थीं। इन क़बरों के भीतर मनुष्यो जो अस्थिकंकाल निकले हैं वे सम्पूर्ण रूप से अच्छी दशा में हैं। जिन लोगों की ये हड्डियाँ है वे किस समय में थे और जीवन-व्यापार कैसा था, इस विषय का विचार अनेक पाश्चात्य विद्वान् इस समय कर रहे है। इन क़बरो के निकलने के पहिले 'हारलीनवे' का कोई नाम तक न जानता था। वहाँ बस्ती भी कम थी। परन्तु इसकी रमणीकता और प्राकृतिक सौन्दर्य पर मोहित होकर रेडी नाम के एक साहब ने कुछ जमीन वहाँ पर लेकर उस पर मकान बनाना चाहा। मकान की नीव खोदने में, 14 फुट की गहराई पर, रेडी साहब को एक क़बर मिली। यह क़बर एक ऐसे तहखाने में थी जो स्लेट नाम के एक बहुत मुलायम और खूब- सूरत पत्थर का बना हुआ था । इस क़बर के भीतर हड्डियों के साथ हजारो वर्ष के पुराने कुछ ऐसे जेवर और औजार निकले जो इस क़बर की प्राचीनता के सूचक थे। इस पर जो और ज़मीन खोदी गई तो मालूम हुआ कि यह एक बहुत पुराना क़बरिस्तान है- उम ममय का जबकि ब्रांज नामक धातु के औजार काम में आते थे। इसकी ख़बर कार्नवाल की रायल सोसायटी को दी गई और चन्दे से बहुत-सा रुपया जमा करके यह जगह अच्छी तरह खोदी गई । कोई पचास हजार मन रेत और मिट्टी के नीचे दबी हुई सैकड़ो क़बरें यहाँ पर मिलीं। कितने ही कंकाल अच्छी हालत में जैसे के तैसे मिले । स्लेट के बने हुए कितने ही तहखाने भी अच्छी हालत में मिले। हड्डियों के साथ जो चीजें निकली वे, अत्यन्त पुरानी होने के कारण, बड़े ही महत्त्व की समझी गई। जो अस्थिकंकाल और चीजें इन क़बरों में मिलीं उनमे से कुछ तो एक अजायब- घर में रक्खी गई हैं और कुछ वही पर, एक मकान में, शीशे के छोटे-छोटे बक्सों में । जो चीजे मिली हैं उनमें से कितने ही कर्प, अंगूठियाँ, कड़े और छोटी-छोटी गोलियां है । स्लेट और शंख की भी कितनी ही चीजें हैं। कई चीज़ों के ऊपर तरह-तरह के भद्दे चित्र खुदे हुए हैं, जिससे माबित होता है कि ढाई-तीन हजार वर्ष पहले वहाँ के लोगों को नक्श की हुई चीजें पहनने का शौक़ हो चला था । वहाँ पर जो खोपड़ियां निकली हैं उनमें से बहुत सी इतनी अच्छी दशा में है कि उन्हे देखकर शरीर-शास्त्र के जानने वाले झट से पहचान जाते हैं कि ये स्त्रियों की हैं या पुरुषों की । दाँत तक इन खोपड़ियों में से किसी-किसी में अभी तक पूर्ववत् बने हुए है खोपड़ियों में एक यह विचित्रता है कि इनकी शक्ल कुछ-कुछ बन्दरों की खोपड़ियों से