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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४०९

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लंबे होंठ वाले जंगली आदमी /405 की सफ़ाई होने लगी । झंडियां लगाई जाने लगीं। सुवह हम लोग अपने जंगली मेहमानों की मार्ग-प्रतीक्षा बड़े चाव से करने लगे । कुछ दिन चढ़े दम नावें दूर से आती हुई देख पड़ीं। हमारे जहाज पर दो छोटी-छोटी नोपें भी थीं। उनसे मलामी दागी गई । तब तक वे लोग पाम आ गए । मैंने हुक्म दिया कि मिर्फ़ मरदार और उसके 15 माथी जहाज़ पर आवें। उन्होने वैसा ही किया । उनके आने पर मैंने उन्हें बैठने की जगह दी। जहाज को देखकर वे लोग आश्चर्य में डूब से गए। उसे देखकर वे भाँति-भाँति की चेष्टाएँ करने लगे । कोई नाचने लगा, कोई कूदने लगा, कोई होंठ हिलाने लगा। सरदार और उसके साथियो के बैठने पर मैंने कहा, मैं तुम्हारे आने से बहुत प्रमन्न हुआ। मैंने कई चीजें सरदार को नजर की। उनमें आइने भी थे । आइनो में अपना- अपना प्रतिविब देखकर वे लोग बे-तरह ग्लश हुए। उन्होने उनको कोई जादू की चीज़ ममझी । उनको सामने रखकर वे बंदगे की तरह मुंह बनाने लगे। यह देखकर मुझे हमी आने लगी । पर मैंने रोका। इतने मे मरदार उठकर जहाज के किनारे गया और अपने आदमियों से एक बडल ले लिया। उसे खोलकर पूमा नामक जानवर की एक खूबसूरत खाल, बंदनों की 12 खालें और थोड़े मे कोमल-कोमल पर उसने नजर किए । पाँच मन 'गटापरचा' भी उसने मॅगाया। उसे वेखकर कप्तान साहब की छाती गज़-भर चौड़ी हो गई । आप मारे खुशी के फूल उटै । तीन घंटे तक उन जंगली जीवों ने जहाज का एक-एक कील-काँटा तक देख डाला। दो दिन बाद लौटकर नाच दिखाने का उन्होंने वादा किया । तब वे अपने गाँव को रवाना हुए । साथ मे वे उन नीन आदमियो को भी लेते गये । मैंने समझा कि कामयाबी मे देर नही । ये लोग ज़रूर दो-तीन आदमी मेरे माथ भेजने पर राजी हो जायेंगे । हम लोग चुपचाप उनका रास्ता देखने लगे। तीन दिन की इंतिजारी के बाद वे लोग आए । स्त्री, पुरुष, बच्चे मिलाकर मब 70 थे । नदी के दूसरे किनारे पर उन्होंने डेरा डाला। हम लोग उनका नाच देखने के लिए उनके डेरे पर जाने लगे और वे लोग हमारे जहाज़ पर आने लगे । कोई एक हफ्ते तक यह काररवाई जारी रही। इस दरमियान में कप्तान रोबेरिओ ने 10 मन गटापरचा लिया । अब हम लोगों ने लौटने की ठानी। पिछले तीन-चार दिनों से वे पहले वाले तीन जंगली सरदार जहाज पर ही सोने लगे थे। वे हम लोगो के साथ चलने को एक पैर के बल तैयार थे। तैयार थे या नहीं, यह बात तो अभी मालूम हो जायगी, पर ये अपनी तैयारी जाहिर ज़रूर करते थे । हम लोगो ने सलाह कन्के चुपचाप एक रात को चल देना वि वारा । हमने कहा, ऐमा न हो जो कही दनका मरदार इन तीनो को हमारे साथ न जाने दे। इससे बेहतर यही होगा कि हम लोग बिना खबर किए ही चल दे । अँधेरी गत में दो बजे हमने जहाज का लगर उटाया । हमारी नावे भी हमारे माथ-साथ चुपके-चुपके चलो । कोई एक घंटे तक हम लोग चले गए। कोई विशेप वात नहीं हुई। पर कुछ देर में किनारे पर आदमी चलते हुए मालूम हुए । यांगसिल ने रंग-ढंग देखकर कहा, हम पर मला होना चाहता है । उसने अपने नाव वालो से कहा, नाव छोड़- कर फ़ौरन जहाज पर आ जाओ और जी-जान से लड़ने के लिए तैयार हो। नहीं तो मौत अब दूर नहीं। उन लोगों ने इसकी फ़ौरन तामील की। जहाज पर उनके आते ही