406 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली किनारे पर भयंकर चिल्लाहट शुरू हुई और तीरों की वर्षा होने लगी। हम लोगों ने समझा कि हमला हुआ । सबने अपनी-अपनी बंदूक़ भरकर हाथ में ली। दोनों तोपें भी भरी - गई। - इतने में मैंने देखा कि वे तीन लंबे होंठ वाले, जो जहाज पर सोए थे, भागने की कोशिश कर रहे हैं। मैंने उन्हें पकड़ा। बहुत धमकाने पर उन्होंने भागने का कारण बतलाया। उन्होंने कहा कि हमारी दिली इच्छा तुम्हारे साथ जाने की हरगिज न थी। हम तो सिर्फ इसलिये जहाज़ पर आए थे, जिसमे यहाँ की सब बातें जान ले और तुम्हारे जाने की खबर मरदार को दें । क्योंकि यह निश्चय हो गया था कि ज्यों ही तुम लोग यहाँ से जाने की तैयारी कगे, त्यों ही तुम पर हमला किया जाय । यह सुनकर मै क्रोध से जल उठा। मैंने इन दगाबाज़ो को जहाज के भीतर कैद कर रखा है। अब तक जहाज़ पर बाण-वर्षा बराबर जारी थी। यांगसिल के दो आदमी घायल भी हो चुके थे। कुछ देर में उन जगली अमभ्यों की कोई तीम नावों ने जहाज को घर लिया। उनसे उनरकर वे जहाज़ पर चढ़ने लगे। पर यागमिल के आदमियो ने बड़ी बहादुरी से उनका मुक़ाबला किया । ज्यो ही वे जहाज़ पर चढ़े, त्यों ही हम लोगो ने उन्हे पानी में फेंका । उनका सिर जहाज़ पर देख पड़ते ही वे बेरहमी से ढकेले गये। एक आदमी ऊपर चढ़ आया। माग्ने-पीटने पर उसने भी कबूल किया कि सरदार का इगदा था कि जहाज पर कब्जा करके जो कुछ उस पर हो छीन लिया जाय और हम सब लोग एक- एक करके मार डाले जायँ । अब हमने जाना कि इन कमबख्नो ने क्यो हमारी इतनी खातिर की थी और क्यों इतनी चीजे नजर की थी। उन्होंने समझा था कि रबर, चमडा और गटापरचा आदि थोड़े ही जाने पावेंगे । अंत को वह सब हमी छीन लेंगे। हम लोगो ने मोचा कि इन जंगली जीवो को अच्छी तरह सजा देना चाहिए । खूब लक्ष्य करके गोलियाँ छोड़ी जाने लगीं। दोनो तोपों में भी बत्ती दी गई । फ़ायर होते ही लंबे होठ वालों की कितनी ही नावें उलट गई। कितने ही जंगली पानी में गोते खाने लगे। कितने ही डूबे । कितने ही गोलियाँ और गोले खाकर मर । इससे वे लोग बे-तरह घबरा गए । पर उन्होंने पीछा न छोड़ा। बगबर तीरो की वर्षा करते ही रहे। इतने में सवेग हुआ, हमने देखा, 30 नहीं, 40 नावें हमारा पीछा कर रही है । इस पर हम लोगों ने जहाज़ की चाल तेज कर दी। यह देखकर लंबे होठ वाले और भी जोश में आकर लडने लगे। वे जहाज के बहुत पाम आकर उस पर चढ़ने लगे। अब तक हम लोगों के तीन आदमी मर चुके थे और 8-10 घायल हो चुके थे। हमारी हालत खगब हो रही थी। हमने फिर तोपों में बत्ती दी और गोले छोड़े । पाम की कई नावे डूबी और उन पर जो लोग मवार थे उड़ गए । इतने में हमने देखा कि कई नावें जहाज़ के नीचे पहुँच गई। कितने ही जंगली जहाज़ पर चढ़ आए। उनसे हमारे आदमियो ने मल्लयुद्ध शुरू कर दिया। फल यह हुआ कि हम लोगों ने उन जंगलियों को जहाज से मार भगाया। जब उन लोगों ने देखा कि बलपूर्वक लड़कर वे जहाज़ को नही छीन सकते, तब उन्होने चिल्ला-चिल्लाकर अपने कैदियों को मांगना शुरू किया । यांगसिल ने कहा, अब बचने
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