पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४१५

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अफ़रीका के खर्वाकार जंगली मनुष्य /411 न कहें, इसमें कोई संदेह नहीं कि मनुष्य सदा से मनुष्य है । वह बंदर की औलाद नही; मनुष्य का पार्थक्य अन्य जंतुओं से सदा से चला आता है। प्राचीन काल में जब हमारे पूर्व-पुरुष पर्वत-गह्वरों में वास करते और पेड़ों की छाल पहनते थे, तब भी उनमें और अन्य जीवों में बड़ा भेद था । हमने मिलान करके देखा है कि बौनो की बुद्धि हम लोगो की बुद्धि से किमी तरह कम नही । युग-युगांतर से उनकी दशा ऐसी ही रही है । ईमा से चार सौ पैतालीम वर्ष पहले, हिरोडोटम के समय में, इन लोगों की जैसी दशा थी वमी ही आज भी है। उस समय तथा उसके पहले वे ऐलबर्ट झील के आसपास रहते थे। इन बौने आदमियों का आविष्कार पहले-पहल हिरोडोटस तथा एंड्रयू बाटिल ने किया था। 1876 ईसवी में हमने पहले-पहल एक बौना देखा; परंतु उमको अच्छी तरह न देख पाए। 1881 ईमवी में, जब हम एमिल पाणा को छड़ाने के लिए फ़ौज लेकर अफ़गेका के जगलों में गए थे, भिन्न-भिन्न उम्र के कोई पचास बौनों को वहाँ से पकड़ लाए थे। अफरीका में इहरियो और इतरी नाम की दो नदियाँ है । इन्हीं दोनों नदियों के बीच के प्रदेश में बौने रहते है। इस प्रदेश का विस्तार कोई तीस हजार मील है। ऊपर लिखे हुए बौनों को जब हमने पकड़ा था, तब उनके बहुत से गाँव देखे थे और उनके संबंध में बहुत मी बातें भी जानी थो। एक गाँव को पार करने में कोई डेढ़ दो घंटे ममय लगता है। " जिन जंगलों मे ये बौने रहते है, उनके बाहर अपेक्षाकृत सुमभ्य कृपक बमने है। बौनो की अपेक्षा वे ऊँचे, बलिष्ठ और मुंदर होते है । शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए वे मनुष्यों के दांत और बंदरो की हड्डियों आदि की मालाएँ बनाकर पहनते हैं। माधारण मनुष्यो की तरह बौनों की ऊँचाई भी न्यूनाधिक होती है। बौनों की अधिक-से-अधिक ऊँचाई पचास इंच होती है । सैकड़ो ऐसे भी जवान बौने देखने मे आते हैं, जो केवल तेंतीस इंच लंबे होते हैं। " हमने पहले सुना था कि बौने-योद्धा खूब लंबी दाढी रखते है; पर अनुसंधान से मालूम हुआ कि केवल एक को छोड़कर और किसी के दाढ़ी नहीं । उनके शरीर का चमडा इतना ढीला होता है कि सहज ही में उँगली से पकड़कर खीचा जा सकता है। अस्त्र, शस्त्र, गहना इत्यादि अपने इस्तेमाल के कोई भी पदार्थ ये स्वयं नही प्रस्तुत कर सकते । जंगल के बाहर जो कृषक रहते हैं, उन्हीं से ये लोग अन्य वस्तुओं के बदले में ये पदार्थ ले आते या चरा लाते है । शहद, जंगली जानवरो का मास, व्याघ्र-धर्म, पक्षियों के पर आदि ही इनके परिवर्तन के मुख्य पदार्थ है । अन्य मांस जब नही मिलता, तब ये लोग गढ़ा खोदकर हाथियो या जगली भैसों का शिकार करते हैं और उनके मांस तथा हडिडयो के बदले में कृषको से तीर-कमान, लोहे के गहने, कमरबंद, तरकस, छुरे, थैले इत्यादि पदार्थ ले आते है । कच्चे-पक्के केले तथा केले की शराव ये लोग बहुत पसंद करते हैं । इसी शराब को पीकर ये लोग आनंद से नृत्य करते हैं। यही शराब इनकी विलासिता की सामग्री है। ये लोग नाना प्रकार के जगली फल भी खाते हैं। उनमें से कुछ इतने मीठे और मजेदार होते हैं कि पृथ्वी की कोई भी सभ्य जाति उनका आदर कर सकती है। इसके सिवा जिन फलों को ये खाते हैं उनमें से कोई-कोई इतने विषाक्त भी होते हैं कि यदि कोई अन्य मनुष्य उनको खा ले, तो तुरंत ही मर जाय । मांस को ये अच्छी - "