420/महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली 1 मूर्तियां स्थापित करते थे । हवाई नाम के टापुओं के निवासी और भी कई देवताओं को पूजते थे। वहाँ कई ज्वालामुखी पर्वत हैं। अतएव उनके कितने ही देवताओं की सृष्टि पर्वतों के कारण हुई थी। इन देवताओं के सामने मनुष्यों तक की बलि दी जाती थी। खाने की चीजें और शराब भी इन पर चढाई जाती थी। नर-बलि तो नही, पर और सब प्राचीन प्रकार की पूजा अब तक यहाँ होती है । इन लोगों की कितनी ही प्राचीन देव-मूर्तियाँ पश्चिमी सभ्यता के प्रसाद से नष्ट-भ्रष्ट हो गई है । कुछ योरप के बड़े-बड़े अजायबघरों में पहुँच गई हैं । बची-वची जो रह गई हैं, वे यत्र-तत्र पाई जाती है । असभ्य जातियों में जैसे नाचों का प्रचार है, वैसे ही नाच पहले यहाँ भी होते थे। खेल-खूद के तरीके भी इनके बड़े विचित्र थे। उन्हें देखकर मभ्यताभिमानियों के मन में भय और घृणा के भाव एक ही साथ उदित होते थे। जितने धाम्मिक उत्सव होते थे, सबमे भयानक नाच और उछल-कूद के तमाशे होते थे। यहाँ वाले किसी ज़माने में कमजोर बच्चों और बुड्ढों को, गले में फांसी लगाकर, मार डालते थे । अपने समाज में निर्वल मनुष्यों को जीता रखना ये लोग अपनी तौहीन ममझते थे। जवान और मबल आदमियों ही को जीते रखने के ये पक्षपाती थे। उन्हों से ये समाज की शोभा ममझते थे । परंतु योरपवालो के संमर्ग से इन लोगों ने अपनी पुरानी चाल-ढाल बहुत कुछ वदल डाली है । धर्मांतर भी इन्होने कर डाला है और कपड़े-लत्ते मे भी रूपातर कर दिया है । अब इनमें से कितने ही आदमो कोट और पतलून पहनने लगे है । पहले तो ये प्रायः दिगंबर ही रहते थे। अब भी इन लोगों में अधिकांश दिगबर नही तो अर्द्ध-दिगंबर ही बने विचरा करते है। इनकी स्त्रियाँ भी कमर के ऊपर का सर्वांग त्रुला रखती है; जो कुछ मभ्य हो गई हैं वही उम अंग को ढके रहती हैं । पुराने नाच-कूद अब इनके बद हो चले हैं। किसी-किमी बहुत बड़े महत्त्व के मौके पर अब ये लोग पुगने ढग का नाच नाचते है । सामोआ टापू के निवामी यद्यपि मामूली तौर पर कपडे-लने पहनने की बिलकुल ही परवा न करते थे, मिर्फ पत्तियों से अपने अग-विशेप को ढके रहते थे, तथापि बड़े-बड़े उत्सवो और धाम्मिक कामो के ममय एक लंबा जामा पहनने थे। यहां के धाम्मिक नर्तक एक ऊँची टोपी, नाचने के ममय, पहनते थे। उसे देखकर मभ्य आदमियों को बड़ा कौतुक होता था। हवाई द्वीप के मूल निवामी पक्षियो के पर लगाकर एक अजीब तरह का लंबा कोट बनाते थे । उसके तैयार करने मे वरमों लग जाते थे। यह कोट बड़े मोल का होता था। खास-खास मौकों पर यह कोट पहना जाता था । पर ये पुराने ढंग के वस्त्राच्छादन अब योरप और अमेरिकावालों के कोट और हैट को अपना स्थान देते चले जा रहे हैं। क्रम-क्रम से उनका रिवाज कम हो रहा है। पालीनेशिया और मेलीनेशिया के मूल निवासियों के विषय में मैकड़ो पुस्तके लिखी जा चुकी है। इन टापुओ मे योग्प वालों का प्रवेश हुए कई सौ वर्ष हुए। तब से आज तक इन लोगों के रीति-रिवाज आदि पर बराबर पुस्तकें लिखी जा रही हैं । उनमें से जो बहुत पुरानी पुस्तकें हैं, उन में लिखी हुई कुछ बातें बड़े ही अचंभे की हैं। उन बातों का अब बहुत ही कम रिवाज है। इससे सूचित होता है कि इन टापुओं के निवासी अपनी पुरानी चाल को बहुत शीघ्र छोड़ सकते हैं। एक पुस्तक में लिखा है कि टोगा-द्वीप के
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